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४ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः । ना करनी यह सर्व विरति अरु देशविरतिकू युक्त न ही है. अब इसका नत्तर गुरु कहते है. हे.जव्य तेरा कहना सत्य है इसवास्तेही इहां नही कहा ॥७॥ वंदण पूयण सकार हेतु वास्तेमें कायोत्सर्ग करता हूं. ऐसा नही कहा; परंतु साधर्मी वत्सल तो जैन म तमें अल्पगुणवाले के साथनी करना इसवास्ते यह जो शासन देवतायोंका कायोत्सर्ग करना है सो बदमा न देणे रूप साधर्मी वत्सल है॥७१ ॥क्यों के यह शासन देवता प्रायें प्रमादी है, इसवास्ते कायोत्स ग्गवारा जाग्रत करेदए शासनकी उन्नति करने में न त्साह धारण करते है ॥ ७२ ॥ शास्त्रोमें सुनते है के सिरिकंता, मनोरमा, सुनश अरु अनयकुमारादि कोंको शासनदेवतायोंने साह्य करा ॥७३॥ श्रीसं घके कायोत्सर्ग करनेसें गोष्ठामा हिनके विवादमें शा सनदेवता सीमंधरस्वामिके पास गये, वहां जाकर सत्यका निर्णय करा ॥ ४ ॥ शेष संघके कायोत्स गर्ग करनेसें यहा साध्वीकों शासन देवी सीमंधरस्वा मीके पास लेग ॥ ७५ ॥ इत्यादिक कारणो करके चैत्यवंदनामें देवतायोंके साथ साधर्मी वलरूप कायोत्सर्ग पूर्वाचार्योने करा है परंतु देवतायोंकों
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