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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। हव्यां पीछे करनी, हम मानतेही है. शेष लेख क ल्पविशेष चूर्णि, कल्पहनाष्य, अरु आवश्यक त्तिमें जो है, तिसमें तो तीन घुइसें चैत्यवंदना करनी कहीही नही है. इस वास्ते जो कोइ श्न पूर्वोक्त सू त्रोंका पाठ दिखलाय कर जोलें जीवोंकी प्रतिक्रमणके आयंतके चैत्यवंदनाकी चोथी थुइ बुडावे तो तिस कों निःसंदेह नत्सूत्र प्ररूपक कहना चाहियें; क्यों के? जो कोई हाथी के दांत देखे चाहे तिसकों को इ गर्दनका शृंग दिखावे तो क्या बुंह बुद्धिमान गिना जाता है ! इति कल्पसामान्यचूर्णि, कल्पविशेषचूर्णि कल्पवृहनाष्य अरु आवश्यकवृत्तिनिर्णयः॥
पूर्वपद-श्रीवंदनापश्न्नेमें तीन थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है, सो तुम क्यों नही मानते हो?
उत्तरः-हे सौम्य १ नावनगर, घोघा,३ जामन गर ४ नींबडी, ५ पाटण,६ राजधनपुर, ७ वडोदरा, ७ खंनात, ए अहमदावाद, १० सूरत,११ वीकानेर इत्यादि स्थानोमें हमने अनुमानसे वीश झाननांमा रोंका पुस्तक देखे, परंतु वंदनापश्ना किसी नंमार में हमकों देखनेमें नही आया, इस्से विचार उत्पन्न हू आके जैसे बडे बडे पुरातन नंमारोंमेसें कोनी नं
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