________________
३० चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। जेकर चौथी थुइ पूर्वोक्त पुरुषो नही मानतेथे असा कहेगे तो तिनके शिष्य और गुरु नाई किस वास्ते चौथीथुश्की रचना करते ? तथा उत्तराध्ययनसूत्रकी वृत्तिकारक श्रीशांतिसूरिजीने संघाचारचैत्यवंदन म हानाष्यमें चार थुइ कही है, तथा श्रीजगचंसरि क्रियानधारका कर्ता, तपस्वी, महाप्रनाविक, राणा की सलामें तेतीस ३३ रुपणकाचार्योकों वादमें जी त्या, तपाबिरुद धारक तिनका शिष्य परमसंवेगी, झा ननास्कर, श्रीदेवेंसू रिजीने लघुनाष्यमें चारथुइकही है. तथा श्रीबृहद्गबैकममन श्रीमुनिचंइसरिजी औ र तिनका शिष्य श्रीवादी देवसरिजीने ललितविस्त राकी पंजिका और यतिदिनचर्या में चार थुइ कथन करी है, तथा नवांगी वृत्तिकार श्रीअजयदेवसूरिजी के शिष्य श्रीजिनवननसूरिजीने समाचारीमें चार थु 5 कथन करी है, तथा कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद सूरिजीने योगशास्त्र में चार थुइ कथन करी है, तथा श्रीधर्मघोषसूरिजीने संघाचारवृत्तिमें चार थुइ कथन करी है, तथा श्रीकुलममनसूरिजी तथा श्रीसोमसुंद रसूरि तथा देवसुंदरसूरि तथा नरेश्वरसूरि तथा श्रीना वदेवसूरि तथा तिलकाचार्य तथा श्रीजिनप्रनसूरिजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibr