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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। मेंसें हम एककानी निषेध नही करते है, परंतु हमारे तपगबके पूर्वाचार्य तथा अन्य गबोके आचार्य सब चार थुई मानते आएहै इस वास्ते हमनी चार थुइ मानते है तो इनकी क्या हानी है ? - हमारा अनुनव मुजब अन्य तो कोश्नी हानी दिखने में नही आती है; परंतु जिन श्रावकोंके आगे प्रथम अपने मुरवसें तीन थुश्की श्रक्षा प्ररूप चूके है फेर तिनके आगें चार शुश्की प्ररूपणा करनेसें लज्जा आती है. उनकुं हम कहते है के हे नव्य लज्जा रखनेसे उत्सूत्र प्ररूपणा करनी पड़ती है. इस्से संसारका तरणा कदापि नही होवेगा, परंतु पंचाशककी कथन करी जो चार वा आठ थुइ तिन का निषेध करनेसें उलटी संसारकी वृद्धि होनेका संजव होता है, तो इस्स हमारे लेखकों बांचकर जो जव्यजीव मतपदपातसे रहित होवेगा सो कदा पिचार शुश्का निषेध अरु तीन शुश्के माननेका आग्रह न करेगा ॥ इति पंचाशक पातनिर्णय ॥ १ ॥
प्रश्नः-पंचाशकजीमें चोथी थुकू किसीके मत प्रमाणसें श्रीअनयदेव सूरिजीयें अर्वाचीन कही है ? अरु वो अर्वाचीन पदका क्या अर्थ है ?
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