________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। गीयन तमाय सूरिणो पुरिसा ॥ कहते सुत्त विरुई, समायारी परूवेंति ॥ २७ ॥ इनका अर्थ कहते है. सूत्र में एक प्रकारेही चैत्यवंदना कही है, इस वास्ते नव नेद कहने अयुक्त है. असा अर्थ कोइ स्थलबु दि वाला इस सूत्रका स्मरण करके कहता है ॥ २२ ॥ तीनथुइ तीनश्लोक परिमाण जहांतक क हियें तहांतक जिन चैत्यमें साधुकों रहनेकी आज्ञा है, कारण होवे तो उपरांतजी रहे ॥ २३ ॥ ___ अब गुरु उत्तर देते हैं । तिन्निवा इत्यादि जो सूत्र है सो चैत्यवंदनाके विधिका प्ररूपक नही है, किंतु विना कारण जिनमंदिरके परिजोग करनेका निषेध करने वाला है इस हेतु करके चैत्यवंदनाके विधिका प्ररूपक नही है ॥ २४ ॥ तथा जो इस गा थामें वा शब्द है सो प्रगट पक्षांतरका सूचक तिहां है, इस वास्ते संपूर्ण चैत्यवंदना करे, अथवा तीन थुइ कहे ॥ २५ ॥ यहनी नावार्थ इस सूत्रका संन वे है. तिस वास्ते अन्यार्थका प्ररूपक सूत्र अन्यत्रा र्थमे जोडना युक्त नही है॥ २६ ॥ जेकर तीनशु मात्रही चैत्यवंदना करनेकी सूत्रमें आज्ञा होवे, तब तो घुइ स्तोत्रादिककी प्रवृत्ति सर्व निरर्थक होवेगी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org