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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। उपरांत न रहे. सो मर्यादा यह है के, चैत्यवंदनाके अं तमें शकस्तवादिके अनंतर जो तीन थुई तीन श्लोक परिमाण प्रणिधानके वास्ते प्रतिक्रमणाके अनंतर मं गलार्थ स्तुति तीनके पावत् कही है,तहां ताई चैत्य जिनमंदिरमे रहनेकी आज्ञा है, कारणविना उपरांत न रहे. तात्पर्य यह हैके, संपूर्ण चैत्यवंदनाके करें पी जे विना कारण साधु जिनमंदिरमें न रहै इस व्याख्या न रूप वन्हिने हे सौम्य तेरे चोथी थुईके निषेध कर णे रूप धनकों नस्मसात् करमाला है,इस वास्ते ते रा तीन थुईका मत पूर्वाचार्योंके मतसे विरु६ है, तो अब तुंनी इसमतकों जलांजली दे. इति व्यवहार जाष्य गाथा निर्णयः ॥
पूर्वपदः-आवश्यकादि शास्त्रोंमें मृतक साधुके प रख्या पी. तीनथुकी चैत्यवंदना कही है तिन शा स्त्रोंका पाठ यह है॥ चे घरु उवस्सए, वाहाई ती तन शुईतिनि ॥ सारवण व सहीए, करेए सवं व सहि पालो ॥१॥ अविहि परिवणा ए, कानस्सगो न गुरु समीवंमि ॥ मंगल संति निमित्तं, थन त अ जिय संतीणं ॥ ॥ ते सादुगो चेश्य घरे ता परिहा यं तीहिं थुहिं चेश्याणि वंदिन आयरिय सगासे ३
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