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२४ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः । दनाका तीसरा उत्कृष्टोत्कृष्ट नेद कहा है। इन तीनो नपलकृष्ण रूप नेद कहनेसें शेष एकेक वंद नाके स्वजातीय दो दो नेदनी ग्रहण करना. एवं स व नव नेद चैत्यवंदनाके पंचाशकजीकी गाथायोसें सिक दुए हैं ॥ ६७ ॥ यह श्रीहरिनसूरिजी जैन मतमें सूर्यसमान थे और उत्तराध्ययनजीकी वृहद्व त्तिका कर्ता श्रीशांतिसूरिजी महाप्रजावक,इनके रचे प्रकरण और नाष्यकों जो कोइ जैनमतिनाम धरा के प्रामाणिक न माने तिसके मिथ्यादृष्टि होनेमें जै नमति कोइ नव्य शंका नही करसक्ता है, इन दो नों आचार्योंने चौथी थुइ प्रमाणिक मानी है, सो आगे लिखेंगे. इति नवनेदसें चैत्यवंदनाका स्वरूप ॥
प्रश्नः-श्रीव्यवहारसूत्रकी नाष्यमें तीन थुझसें चै त्यवंदना करनी कही है. सो गाथा यह है ॥ ति निवा कट्टई जाव, शुश्न तिसिलोश्या॥ताव तब अ पुनायं, कारणेण परेणवि ॥ १ ॥ अस्यार्थः ॥ श्रु तस्तवानंतरं तिस्रः स्तुतीस्त्रिश्लोकिकाः श्लोकत्रयप्र माणा यावत् कुर्वते तावत्तत्र चैत्यायतने स्थानम नुज्ञातं कारणवशात् परेणाप्युपस्थानमनुज्ञातमि ति वृत्तिः ॥ अस्य नाषा ॥ श्रुतस्तवानंतर तीन युइ
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