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चतुर्थस्तुप्तिनिर्णयः। ११ धिके नेद सामान्यमात्र संदेपमात्र करके कहे हैं. तिस चैत्यवंदनाके करनेका जो कम है सो विशेष करके याचरणासें जाना जाता है ॥ १७ ॥ क्योंके सूत्र जो है सो सूचना मात्र है. च पुनः आचरणा सें तिस सूत्रका अर्थ जाना जाता है, जैसे शिल्प शास्त्रनी शिष्य अरु प्राचार्य के क्रम करके जाना जा ता है; परंतु स्वयमेव नही जाना जाता है ॥ १७ ॥
तथा अन्य एक बात है ॥ अंगोपांग प्रकीर्णक नेद करके श्रुत सागर जो है सो निश्चय करके अ पार है कौन तीस श्रुतसागरके मध्यकू अर्थात् श्रुत सागरके तात्पर्य• जान सकता है. अपणे ताई चा हो कितनाही पंमितपणा क्यो न मानता होवे ? ॥ १ए ॥ किंतु जो अनुष्ठान गुन ध्यानका जनक होवे और कर्मोंके क्य करने वाला होवे, सो अनु ष्ठान आवश्यमेव शास्त्रअंग शास्त्ररूप समुश्के विस्ता रमें कह्या दूआही जानना. जिस वास्ते शास्त्रमै ऐ से कहा है ॥ २० ॥ सर्व गुनानुष्ठानके कहने वाले छादशांग है क्योंके हादशांग जे है वे रत्नाकर समु ६ अथवा रत्नाकी खानितुल्य है, तिस वास्ते जो शु नानुष्ठान है सो सर्व वीतरागकी बाझा होनेसें सुं
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