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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १७ श्रीहरिनइसरिजी दुए है; इति आचरणास्वरूप ॥ - पूर्वपद ॥ श्रीबृहत्कल्पका नाष्यकी गाथामें तीन युश्की चैत्यवंदना करनी कही है, असेही पंचाश कवृत्ति तथा श्राइविधि तथा प्रतिमाशतक, संघा चारवृत्ति, धर्मसंग्रह और तुमारा रचा दुआ जैनत त्त्वादर्शादि अनेक ग्रंथोमें यही कल्पनाष्यकी गाथा लिखके तीन शुश्की चैत्यवंदना कही है, तो फेर तुम क्यों नही मानतेहो ?
उत्तरः-हे सौम्य हमतो जो शास्त्रमें लिखा है त था जो पूर्वाचार्योंकी आचरणा है इन दोनोंकों सत्य मानते हैं; परंतु तेरेको बृहत्कल्पका नाष्यकी गाथाका तात्पर्य नही मालुम होताहै, इस वास्ते तुं तीन थुइ तीन शुश् पुकारता है ! क्योंके महानाष्यमें नवनेदें चै त्यवंदना कही है, तिनमेंसें तेरी तीन थुश्की बंदनाका बहा नेद है; तथाच महानाष्यपाठः ॥ ___एगनमोकारणं, हो कणि जहन्नथा एसा ॥ज हसति नमोकारा, जहनिया नन्न विजेता ॥ ५४॥ सच्चिय सक्थयंता, नेया जेहा जहानिया सन्ना॥स चिय इरियाव हिया, सहिया सक्कथय दंमेहिं ॥ ५५॥ मनिमकणि6ि गेसा, मनिम मनिमन होश सा चेव॥
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