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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। त्यादि ॥ अस्यनाषा ॥ तिहां जो मार्ग है सो ललितविस्तरामें इसही उपदेशपद शास्त्रके कर्ता श्री हरिजश्सरिजीने इस प्रकारके लदणवाला कहा है. इस कथनसे जौनसे श्रीहरिनइसुरिजीने उपदेशपद ग्रंथ करा है, तिसही श्रीहरिजसूरिजीने ललितवि स्तरावृत्ति करी है, यह सिम होता है ॥
प्रश्नः-नपमितनवप्रपंचकी आदिमें जो सिक्षक पिजीने लिखा है, के यह ललितविस्तरावृत्ति मेरे श्रीगुरु हरिनसूरिजीने मेरे प्रतिबोध करने वास्ते रची है इस लेखसे तो ललितविस्तरावृत्तिका कर्ता प्राचीन श्रीहरिनसरि सिम नही होते है ? _ उत्तरः-हे जव्य उपमितनवप्रपंचकी आदिमें सि ६षीजीने 'अनागतं च परिझाय' इत्यादि श्लोकमें पैसे लिखा है के श्रीहरिनइसरिजीने मुजकों अना गत कालमें होनेवाला जानके मार्नु मेरेही प्रतिबो ध करने वास्ते यह ललितविस्तरावृत्ति रची है. यो र जो सिरुषिजीने श्रीहरिनइस रिकू गुरु माना है, सो आरोप करके माना है. जैसा कथन ललि तविस्तरावृत्तिकी पंजिकामें करा है, इस वास्ते ल लितविस्तरावृत्तिके रचने वाले १४४४ ग्रंथ कर्ता
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