________________
१२
चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
दर है तिस श्रुतरत्नाकर में ॥ २१ ॥ मूल सूत्रोंके व्य वेद हुए, और बिंदु मात्र संप्रतिकालमें धारण क रते हुए अर्थात् बिंदु मात्र मूल सूत्रके रहें, तिस सूत्र सर्वानुष्ठानकी विधि क्योंकर जानी जावे, इस वास्ते श्राचरणासेंही सर्व कर्त्तव्यमें परमार्थ जाना जाता है ॥ २२ ॥ कहा है बहुत कम करके जो प्राप्त हूइ है यचरणा सो खाचरणा सूत्रके विरहमें सर्वा नुष्ठानकी विधिक धारण करती है, जैसें दीपकके प्रकाशसें नली दृष्टीवाले पुरुषोंने कोइक घटादिक वस्तु देखी है सो वस्तु दीपकके बृजगयें पीजी स्व रूपसें नूलती नहीं है, यैसेंही यागम रूप दीपकके बूजगएनी यागमोक्त वस्तु याचरणासें सम्यकदृष्टी पुरुष याचार्योंकी परंपरासें जानते हैं इसका नाम याचरणा कहते हैं ॥ २३॥
तथा धर्मीजनो मे पूर्वकालमें जीताथा और वर्त्त मानमें जीवे है रु अनागत कालमें जीवेगा जैन शास्त्रमें कुशल तिसकों जित कहते है तिस जीतका नामही याचरणा कहते है ॥ २४ ॥
तिस वास्ते जो यज्ञातमूल होवे, जिसकी खबर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org