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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १३ न होवे के यह आचरणा किस आचार्यनें किस का लमें चला है, तिसकू अझातमूल कहते है जैसी अज्ञात मूल आचरणा हिंसारहित और गुनध्यान की जननी होवे, अरु आचार्योंकी परंपराय करके प्राप्त होवे, तिस आचरणाकों सूत्रकी तरे प्रमाणनू त माननी चाहिये ॥ २५॥ इति नाष्यवचनात् याचरणाका स्वरूप.
तथा श्रीप्रवचनसारोबार वृत्तिमेंजी ऐसा लेख है. श्यं स्तुतिश्चतुर्थी गीतार्थाचरणेनैव क्रियते गीतार्थाचरणं तु मूलगणधरनणितमिव सर्व विधेयमेव सर्वैरपि मुमुकुनिरिति ॥ अस्य नाषा ॥ यह चोथी थुइ गीतार्थोकी आचरणासें करीये है और गीतार्थों की जो पाचरणा है, सो मूल गणधरोंके कथन क रे समान सर्व मोक्षार्थी साधुयोंकों सर्व करणे योग्य है. इस वास्ते चोथी थुइ जो कोई निषेध करे सो मिथ्यात्वका हेतु है. __तथा जो कोश् चोथी शुश्के अर्वाचीन शब्दका अर्वाक कालकी अंगीकार करी असा अर्थ समजते है तिनकी समजकी बहु नूल है, क्योंके विचाराम त संग्रह ग्रंथमें श्रीकुलममन सूरिजीयें जैसा लि
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