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चौबीस
चारित्र चक्रवर्ती कर उपराष्ट्रपति महोदय डॉ. राधाकृष्णन द्वारा दी गई उपस्थिति।
इन सभी तस्वीरों को एकत्रित किया गया व इन्दौर के सुप्रसिद्ध कम्प्यूटर प्रोग्रामर आर्टिस्ट सुनील गुप्ता को सौंप दिया। इसमें सोने पर सुहागे का काम किया इंटिरीयर डेकोरेटर अभय कटारिया ने और अब यह “इस युग के महानायक के महाप्रयाण को साधना के छत्तीस दिन' शीर्षक से आपके सामने है। इन ३६ दिनों की तस्वीरों के साथ हमने उस-उस दिन के मिनट भी जैन गज़ट के उसी विशेषांक से लेकर दिये हैं।।
वैसे इसे एकदम से इस संस्करण में सम्मिलित करने का निर्णय भी हमारे अकेले का नहीं है। इस निर्णय को पुष्ट किया आचार्य श्री विद्यानंदजी, आचार्य श्री वर्धमानसागर जी, आचार्य श्री देवनन्दि जी, क्षुल्लक श्री ध्यानसागरजी, स्वस्तिश्री भट्टारक चारूकीर्ति जी, स्वयं महासभा अध्यक्ष आदरणीय सेठी जी, इस संस्करण के मुख्य द्रव्यदाता कांतिलाल जी, प्राचार्यश्री नरेन्द्रप्रकाश जी, सुप्रसिद्ध उद्योगपति व महासभा उपाध्यक्ष श्रो त्रिलोकचंदजी कोठारी, जैन गज़ट के सह संपादक श्री कपूरचंदजी पाटणी आदि आदि।
अब समस्या पूर्व संस्करणों में प्रकाशित तस्वीरों की थी कि उनका क्या किया जाय ? इन तस्वीरों की भी मूल तस्वीरें अथवा निगेटिवादि उपलब्ध नहीं हो पाई थी।तब पूर्व प्रकाशित संस्करणों से वे तस्वीरें ले उन तस्वीरों को हमने लघुरूप दे उनकी स्मृति बनाये रखने के लिये इस संस्करण में मुद्रित करवाने का निर्णय लिया।
चित्रों से संबंधित एक कार्य और किया गया । प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में हमने एकएक पार्टिशन पेज, जिसे कि डिवाईडर भी कहते हैं, की निर्मिति का। इन डिवाईडरों में हमने प्रत्येक अध्यायगत् विषय वस्तु का अहसास दिलाने वाले रेखाचित्र अथवा फोटो चित्रों को चित्रित करवाया। इस कार्य में सहयोग दिया इंदौर शहर की सुप्रसिद्ध आर्टिस्ट कुमारी अंशुम
जैन(कोठारी) ने, जिसकी कि इस क्षेत्र में निपुणता निसर्ग प्रदत्त है। उन चित्रों की निर्मिति के लिये हमने सहयोग लिया मुनिवर्य नियम सागरजी द्वारा विरचित विद्याष्टक का॥ इनको निर्मिति में कुछ रेखाचित्र तो हाथ से बनाये व कुछ के लिये तस्वीरों का सहयोग लिया गया।
इस प्रकार इस संस्करण को संस्कारित करने का यह द्वितीय अध्याय पूर्ण हुआ।
अब यह संस्करण आप सभी के सामने है, एक विशिष्ट प्रस्तावना चारित्र चक्रवर्तीएक अध्ययन' के १६ पृष्ठीय लेख के साथ। इसमें जो कुछ भी उत्तम है, वह सब मेरे सहयोगियों/सहकर्मियों का है, जिन्होंने कि इस कार्य को एक मिशन की तरह किया और जो भी भूलें अथवा अनुत्तम है, वह सब मेरा है, क्यों कि अंततोगत्वा कार्य मेरे ही निर्देशन में सम्पन्न हुआ है ।। मैं उन समस्त भूलों/चूकों के लिये हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ। दिनांक : १.२.२०६
हेमन्त काला इंदौर (म.प्र.)
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