Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 14
________________ छहढ़ाला लोहे-सा गोला फेंका जाय तो वह भी गल सकता है । इतनी शीत वहाँ ५ ., ६वें, ७वें नरक में हैं । प्रश्न ६-उष्ण नरक कौन से हैं ? उत्तर-प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम भूमि का ऊपरी भाग ये उष्ण नरक हैं । यहाँ गर्मी अधिक है। प्रश्न ७-शीत नरक कौन से हैं ? उत्तर–पाँचवीं भूमि का निचला हिस्सा ( नीचे का तिहाई भाग ) और उनती, सातवीं भूमि अति लगडी होती है । अतः ये शीत नरक कहलाते हैं। प्रश्न ८-नरकों में तिर्यञ्च जीव कृमि, वृक्षादि तो उत्पन्न होते नहीं फिर वहाँ वृक्ष, नदियाँ आदि कैसे पाये जाते हैं ? उत्तर--नारकियों के अपृथक् विक्रिया होती है । नारकीय स्वयं इस प्रकार के नदी, कृमि, वृक्ष आदि बन जाते हैं और एक-दूसरे को पीड़ा देते हैं । तिल-तिल करें देह के खण्ड, असुर भिड़ावें दुष्ट प्रचण्ड । सिन्धुनीरतें प्यास न जाय, तो पण एक न बूंद लहाय ।।१२।। शब्दार्थ-तिल-तिल = तिल के दाने के बराबर । खण्ड = टुकड़ा। असुर = भवनवासी देव । भिड़ावे = लड़ाते हैं । दुष्ट = क्रूर | चण्ड = निर्दय । सिन्धु = समुद्र । नीरतें = पानी से । पण = परन्तु । लहाय = मिले । ___ अर्थ-उन नरकों में नारकी जीव एक-दूसरे के शरीर के तिल के बराबर टुकड़े कर डालते हैं और अत्यन्त क्रूर, निर्दयी असुरकुमार जाति के देव उन्हें आपस में भिड़ा देते हैं । नरकों में प्यास इतनी लगती है कि समुद्र का पूरा पानी पीवें तो भी प्यास नहीं बुझे, किन्तु एक बूंद भी पानी वहाँ नहीं मिलता है। प्रश्न १--नारकी आपस में कैसे लड़ते हैं तथा असुरकुमार देव क्या करते हैं ? उत्तर- नारकी आपस में एक-दूसरे को मारते-काटते रहते हैं । तिल के समान शरीर के टुकड़े कर देते हैं और लड़ते हुओं के बीच में असुरकुमार देव एक-दूसरे को झूठा-सच्चा भिड़ाकर आनन्द लेते हैं और सबको दुःखी करते हैं। परत ह ।

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