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छहढाला अर्थ-मिथ्यादृष्टि जीव अपने शरीर की उत्पत्ति को आत्मा को उत्पत्ति तथा शरीर के नाश को आत्मा का नाश मानता हैं । और राग-द्वेष आदि भाव जो प्रत्यक्ष रूप से आत्मा को दुःख देनेवाले हैं उन्हीं का सेवन करता हुआ यह जीव उनको सुख देनेवाला मानता है।
प्रश्न १–अजीव तत्त्व का उल्टा श्रद्धान क्या है ?
उत्तर-... "सन उपजत अपनी उपज जान, तन नसत आपको नाश मान" शरीरादि भिन्न पदार्थों में आत्मा की कल्पना करना ही अजीव तत्त्व का उल्टा श्रद्धान है।
प्रश्न २--आस्तव तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है ?
उत्तर-राग-द्वेषादि भाव जो दुःख देनेवाले हैं उनको सुख देनेवाले मानना ।
प्रश्न ३-अजीव के भेद बताइए ।
उत्तर—(१) पुद्गल, (२) धर्म, (३) अधर्म, (४) आकाश, (५) काल । ये ५ अजीव के भेद हैं |
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बन्ध और संवर तत्व का विपरीत अमान शुभ अशुभ बन्य के फल मैंझार,
रति अरति कर निज पद विसार । आतम हित हेतु विराग, ज्ञान,
ते लखें आपको कष्टदान ।।६।। शब्दार्थ-शुभ = अच्छे ( पुण्य ) । अशुभ = पाप । बन्ध = कर्मबन्ध । फल = परिणाम । मंझार = भीतर । रति = प्रेम । अरति = द्वेष । निजपद = आत्मस्वरूप । विसार = भूलकर । हित = भलाई । हेतु = कारण । विराग = वैराग्य । ज्ञान = सम्यग्ज्ञान । ते = उनको | लखें = मानता । आपको = अपना । कष्टदान = कष्टदायक ।
अर्थ-मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व के प्रभाव से अपने आत्मस्वरूप को भूलकर कर्मबन्ध के अच्छे फलों से प्रेम करता है और बुरे फलों से द्वेष करता है । आत्मा की भलाई करनेवाले वैराग्य और ज्ञान को यह जीव दुःखदायी मानता है ।