Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 99
________________ छहढाला स्वरूपाचरण चारित्र जहँ ध्यान ध्याता ध्येय को, न विकल्प बच भेद न जहाँ । चिद्भाव कर्म चिदेश करता, चेतना किरिया तहाँ ।। तीनों अभिन्न अखिन्न शुध, उपयोग की निश्चल दशा । प्रगटी जहाँ द्ग ज्ञान-व्रत ये, तीनधा एकै लसा ।।९।। शब्दार्थ-जहँ = स्वरूपाचा मात्रि में । ध्यान - शिर : ध्याता = ध्यान करनेवाला । ध्येय = जिसका चिन्तवन किया जाय । विकल्प = भेद । चिद्भाव = आत्मा का स्वभाव । चिदेश = आत्मा । चेतना = उपयोग । अभिन्न = भेद रहित । अखिन्न = बाधा रहित । निश्चल = अटल । तीनधा = तीन प्रकार । एकै = एक रस । लसा = शोभायमान होते हैं । वच = वचन । अर्थ-जिस स्वरूपाचरण चारित्र में ध्यान, ध्याता, ध्येय का अन्तर नहीं रहता है, जहाँ वचन का भेद नहीं होता । वहाँ पर तो आत्मा का स्वभाव ही कर्म, आत्मा ही कर्ता और चेतना ही क्रिया हो जाती है । ये तीनों कर्ता, कर्म, क्रिया भेद रहित, परस्पर बाधाहीन एक हो जाते हैं। जहाँ शुद्धोपयोग की निश्चल दशा प्रकट होती है, वहाँ पर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र—ये एक रूप से शोभायमान होते हैं । प्रश्न १-ध्यान किसे कहते हैं । उत्तर-- एक को अग्र करके चिन्ताओं का निरोध करना ध्यान है । प्रश्न २----ध्याता किसे कहते हैं ? उत्तर-ध्यान करनेवाली आत्मा ध्याता है । प्रश्न ३--ध्येय किसे कहते हैं ? उत्तर-जिसका ध्यान किया जाता है, वह ध्येय है। . प्रश्न ४-ध्यान का फल क्या है ? उत्तर-ध्यान का फल निर्जरा है। प्रश्न ५-ध्यान के कितने भेद हैं ? उत्तर--(१) आर्तध्यान, (२) रौद्रध्यान, (३) धर्म्यध्यान, (४) शुक्लध्यान । ये ४ भेद ध्यान के जानने चाहिए ।

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