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छहढ़ाला
सिन्द स्वरूप पुनि घाति शेष अघातिविधि, छिनमाँहि अष्टम भू बसे । वसु कर्म विनसै सुगुण वसु, सम्यक्त्व आदिक सब लसै ।। संसार खार अपार पारा-वारि, तरि तीरहिं गये । अविकार अकल अरूप शुचि, चिद्रूप अविनाशी भये ।।१२।।
शब्दार्थ—पनि - फिर । घाति : नाप करके ! शेष = बाकी । अघाति विधि = अघातिया कर्म । छिनमाँहि = क्षणभर में । अष्टम भू = मोक्ष । वसु = आठ । विनसै = नष्ट होने से । सुगुण = उत्तम गुण । लसै = शोभायमान होते हैं । खार = दु:खदायक । पारावार = समुद्र । तरि = पार कर । तीरहिं = किनारे पर । अविकार = विकार रहित । अकल = शरीर रहित । अरूप = रूप रहित । शुधि = शुद्ध (अकलंक)। चिद्रूप - चैतन्य स्वरूप | अविनाशी = नाश रहित ।
अर्थ- अरहन्त हो जाने के बाद बाकी बचे हुए अघातिया कर्मों का नाश करके थोड़े समय में ही मोक्ष में निवास करते हैं । वहाँ पर सिद्धों के आठ कर्मों के विनाश से सम्यक्त्व आदि गुण प्रकट होकर शोभायमान होने लगते हैं । ऐसे जीव संसाररूपी खारे अगाध समुद्र को पार कर दूसरे किनारे को प्राप्त हो जाते है, और विकार रहित, शरीर रहित, रूप रहित, निर्दोष चैतन्यस्वरूप नित्य हो जाते हैं।
प्रश्न १–अघातिया कर्म कितने व कौन से हैं ?
उत्तर—अघातिया कर्म ४ हैं-(१) वेदनीय, (२) आयु, (३) नाम और (४) गोत्र ।
प्रश्न २–अष्टम भूमि किसे कहते हैं ? वह कहाँ है ?
उत्तर-जहाँ सिद्ध भगवान रहते हैं उस भूमि को अष्टम भूमि कहते हैं या सिद्धालय मोक्ष भी कहते हैं । यह स्थान लोक के अग्रभाग में है ।
प्रश्न ३-सिद्ध भगवान किनको कहते हैं ? ।
उत्तर-अष्ट कर्ममल रहित, अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य एवं सम्यक्त्वादि आठ गुणों से रहित परमात्मा को सिद्ध भगवान कहते हैं ।
प्रश्न ४-सिद्धों के किस कर्म के नाश से कौन-सा गुण प्रकट होता है ?