Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 113
________________ छहढाला कोटि जन्म तप तपैं, ज्ञान बिन कर्म झरें जे । ज्ञानी के छिनमाँहि त्रिगुप्तितें सहज टरें ते ।। मुनिव्रत धार अनन्त बार, प्रीयक उपजायो । पै निज आतमज्ञान बिना, सुख लेश न पायो ।।४।। तातें जिनवर कथित, तत्त्व अभ्यास करीजे । संशय विभ्रम मोह त्याग, आपौ लख लीजे ।। यह मानुष पर्याय सुकुल, सुनिवो जिनवानी । इह विध गये न मिले, सुमणि ज्यों उदधि समानी ।।५।। धन समाज गज बाज, राज तो काज न आवै । ज्ञान आपको रूप भये, फिर अचल रहावै ।। ! तास ज्ञान को कारन, स्वपर विवेक बखानौ । : कोटि उपाय बनाय, भव्य ताको उर आनौ ||६|| जे पूरब शिव गये, जाँहि अब आगे जै हैं । सो सब महिमा ज्ञान तनी, मुनिनाथ कहै हैं ।। विषय चाह दव - दाह, जगत जन अरनि दझावै । तास उपाय न आन, ज्ञान घनघान बुझावै ।।७।। पुण्य पाप फलमाहिं, हरख बिलखौ मत भाई । यह पुद्गल परजाय, उपजि विनशैं थिर थाई ।। लाख बात की बात यहै, निश्चय उर लाओ । तोरि सकल जग दंद- फंद, निज आतम ध्याओ ||८|| सम्यग्ज्ञानी होय, बहुरि दिढ़ चारित लीजै । एकदेश अरु सकलदेश, तसु भेद कहीजै ॥ त्रसहिंसा को त्याग, वृथा थावर न सँघारै । पर वध - कार कठोर निंद्य, नहिं वयन उचारै ।।९।। - १११ 7 जल मृतिका बिन और नाहिं कछु गहै अदत्ता | निज वनिता बिन सकल, नारिसों रहै विरता ।। अपनी शक्ति विचार, परिग्रह थोरों राखे । दश दिश गमन प्रमान ठान, तसु सीम न नाखै ।। १० ।।

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