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छहद्राला
प्रश्न ३ -- अब मानव-पर्याय पाकर क्या करना चाहिये ?
उत्तर—“अब तो त्याग निजपद बेइये” अब विषय कषाथों का त्याग करके अपने निजस्वरूप को पहचानना चाहिए ।
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प्रश्न ४ – यदि मानव जीवनरूपी मौका चूक गया तो ? उत्तर- " दाब मत चूको यहै" यह मौका चूकने के बाद फिर मिलना बहुत कठिन है । अतः यह दाब कभी चूकना नहीं !
अन्थ रचना का समय
इक नव वसु इक वर्ष की, तीज शुक्ल वैशाख । कर्यो तत्त्व उपदेश यह, लखि 'बुधजन' की भाख ।। १ ।। लघु-धी तथा प्रमाद ते शब्द अर्थ को भूल । सुधी सुधार पढ़ो सदा, जो पावो भव कूल ।।२।। अर्थ — मैंने बौलतरण की) पी के
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सहारा लेकर विक्रम सम्वत् १८९९ के वैशाख सुदी तृतीया (अक्षय तृतीया ) को यह छहढाला ग्रन्थ बनाया हैं । मेरी अल्पबुद्धि और प्रमाद से इस प्रन्थ में कहीं शब्द और अर्थ की गलती रह गई हो तो बुद्धिमान उसे सुधार कर पढ़ें, जिससे इस संसार से पार होने में समर्थ हो सकें ।