Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 98
________________ छहलाला प्रश्न १२–अपनी निधि क्या है ? उत्तर–पूर्ण रत्नत्रय की प्राप्ति ही आत्मा की अपनी निधि है ! जिन परम पैनी सुबुद्धि छैनी, डारि अन्तर भेदिया । वरणादि अरु रामादि तै, निजभाव को न्यारा किया ।। निज माँहि निज के हेतु निज कर, आप में आपै गयो । गुण गुणी ज्ञाता, ज्ञान ज्ञेय, मंझार कछु भेद न रह्यो ।।८।। शब्दार्थ-परम = अत्यन्त । पैनी = तेज धार वाली । सुबुधि = सम्यक्ज्ञान । छैनी = कटन्नी । भेदिया = अलग-अलग कर दिया । वरणादि = वर्ण आदि पुद्गल के गुण । रागादि = भाव कर्म । न्यारा = जुदा । निज माँहि = अपने में । निज के हेतु = अपने लिये । निज कर = अपने द्वारा । आपको = अपने को । आपै = स्वयमेव । गह्यो = ग्रहण करता है । गुणी = गुणवाला । ज्ञाता = आत्मा । ज्ञान - चेतना शक्ति । ज्ञेय = पदार्थ । मंझार = भीतर । अर्थ-जिन्होंने अत्यन्त तेज सम्यग्ज्ञानरूपी छैनी को डालकर अंतरंग में भेद कर आत्मा के असली स्वरूप को वर्णादि और सगादि भावों से अलग कर लिया है । अतएव जो अपने आत्मा में अपने आत्मा के लिये, अपने द्वारा आत्मा को अपने-आप ग्रहण करते हैं । उनके गुण, गुणी, ज्ञाता, ज्ञान, ज्ञेय इनके भीतर थोड़ा भी अन्तर नहीं रह जाता है । प्रश्न १-आत्मा के गुण क्या हैं ? उत्तर—ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, सम्यक्त्व, चारित्र आदि आत्मा के अनन्तगुण हैं। प्रश्न २....गुणी कौन हैं ? उत्तर-जिसमें ये गुण पाये जाते हैं, ऐसी आत्मा गुणी है । प्रश्न ३–ज्ञाता कौन है ? उत्तर-जाननेवाला आत्म-ज्ञाता है । प्रश्न ४–ज्ञेय कौन है ? उत्तर---पदार्थ ज्ञेय है। प्रश्न ५-ज्ञान क्या है ? उत्तर---ज्ञान आत्मा की चेतना शक्ति है ।

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