Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 96
________________ छहढ़ाला स्वरूपाचरण चारित्र कहते हैं, जिनके उदित होते ही आत्मा की निधि प्रकट होती हैं और परवस्तुओं से प्रवृत्ति हट जाती है | प्रश्न १-तप किसे कहते हैं ? भेद सहित बताइए । उत्तर-इच्छाओं के निरोध को तप कहते हैं । तप के २ भेद हैं—(१) अन्तरंग और (२) बहिरंग । प्रश्न २–अन्तरंग तप किसे कहते हैं ? इसके कितने भेद हैं ? उत्तर-(१) जो किसी को दिखाने में नहीं आता है, वह अन्तरंग तप कहलाता है । इसके ६ भेद हैं । (२) अन्तरंग यानी स्वात्मासे जिसका सम्बन्ध है, ऐसी इच्छा निरोध तप अन्तरंग तप कहलाता है । प्रश्न ३--बहिरंग तप एवं उसके भेद बताइए ? उत्तर-जो तप सबको दिखानेवाला, पर पदार्थों से सम्बन्ध रखनेवाला है तथा अन्य मतावलम्बी भी जिसे करते हैं, बहिरंग तप है । इसके भी ६ भेद हैं। प्रश्न - हवस्पायरम-पारिन को पल क्या है ? उत्तर—स्वरूपाचरण चारित्र के होते ही पर पदार्थों से बुद्धि हट जाती है और रत्नत्रय निधि प्रकट हो जाती है । प्रश्न ५-दस धर्मों के नाम व स्वरूप बताइए ? उत्तर-(१) उत्तम क्षमा-क्रोध नहीं करना । (२) उत्तम मादव-मान नहीं करना । (३) उत्तम आर्जन—मायाचारी नहीं करना । (४) उत्तम शौच---लोभ नहीं करना । (५) उत्तम सत्य-अठ नहीं बोलना। (६) उत्तम संयम-पाँच इन्द्रिय और मन को वश में करना एवं छह काय के जीवों की रक्षा करना । (७) उत्तम तप-इच्छाओं का निरोध करना। (८) उत्तम त्याग-परवस्तु में ममत्व छोड़ना या चार प्रकार का दान देना । उत्तम आकिंचन्य-कोई परवस्तु मेरी नहीं, मैं किसी का नहीं। (१०) उत्तम ब्रह्मचर्य-शीलव्रत को शक्ति अनुसार धारण करना।

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