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छहढ़ाला समता सर्वभूदे सु, संयमे शुभ- भाषना ।
आत - रौद्र - परित्यागस्तद्धि सामाइयं मतं ।। प्रश्न ३-स्तुति किसे कहते हैं ?
उत्तर-तीर्थकर या पंच-परमेष्ठी का सामूहिक गुणानुवाद करना स्तुति कहलाती है।
प्रश्न ४-..वंदना किसे कहते हैं ?
उत्तर-२४ तीर्थङ्करों का अलग-अलग गुणानुवाद करना, अर्हन्तादि पंच परमेष्ठी का अलग-अलग कीर्तन करना, वंदना कहलाती है ।
प्रश्न ५–प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर—मेरे अपराध मिथ्या हों, इस प्रकार लगे हुए दोषों पर पश्चात्ताप करना प्रतिक्रमण है। .
प्रश्न -स्वाध्याय किसे कहते हैं ? उत्तर- (१) जिनवाणी का पठन-पाठन स्वाध्याय हैं ।
(२) स्वात्म चिन्तन स्वाध्याय है । प्रश्न ७–कायोत्सर्ग किसे कहते हैं ? उत्तर—शरीर से ममत्व को छोड़ना कायोत्सर्ग हैं |
शेष ७ गुण एवं मुनियों की समता जिनके न न्होन न दन्तधावन, लेश अम्बर आवरन । भूमाहि पिछली रयन में, कछु शयन एकासन करन ।।५।। इक बार दिन में ले आहार, खड़े अलप निजमान में । कच-लोंच करत न डरत परिषह, सों लगे निज ध्यान में।। अरि मित्र महल मसान कंचन, काँच निंदन श्रुतिकरन । अर्घावतारन असि-प्रहारन, में सदा समता धरन ।।६।।
शब्दार्थ-न्होन = स्नान । दन्तधावन = दोन । अम्बर = कपड़ा । आवरन = ढक्कन । भू माहि = जमीन पर । रयन = रात्रि | कछु = थोड़ा । शयन = नींद । एकासन = एक करवट । करन = करते हैं । खड़े = खड़े होकर । अलप = थोड़ा । पान = हाथ । कचलोंच = केशलोंच (केशों का उखाड़ना) । डरत = डरते हैं । अरि = शत्रु । मसान = मरघट । कंचन =