Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 52
________________ छहढ़ाला प्रकार सम्यग्दृष्टि घर में रहते हुए भी निर्मल रहता है, घर में आसक्त नहीं होता है तथा मोक्ष-मार्ग पर अपना लक्ष्य रखता है । प्रश्न १ --चारिश्मोह किसे कहते हैं ? उत्तर-चारित्र का घातक.मोहनीय कर्म चारित्रमोह है । प्रश्न २..--कौन-सा सम्यग्दृष्टि चारित्र रहित भी देवों के द्वारा पूजा जाता है ? __उत्तर—जो बुंद्रिभान सम्यग्दृष्टि २५ दोषों से रहित है तथा ८ गुणों से सहित होता है वह चारित्र मोह के उदय से संयम धारण की इच्छा करता हैं पर संयम नहीं ले पाता, ऐसा महापुरुष देवों के द्वारा पूजा जाता है । प्रश्न ३–सम्यग्दृष्टि की विशेषता बताइए ? उत्तर-(१) सम्यादृष्टि देवों के द्वारा पूजा जाता है । (२) जैसे जल में रहने पर भी कमल जल से अलग रहता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि घर में रहता हुआ भी गृहस्थी में लिप्त नहीं होता है । (३) जैसे कीचड़ में पड़ा हुआ सोना कीचड़ से भिन्न एवं निर्मल रहता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि गृहस्थी में रहता हुआ भी, घर के कार्यों को करता हुआ भी उसके दोषों से दूषित नहीं होता है । (४) जैसे वेश्या का प्यार सिर्प, पैसे में होता है मनुष्य पर नहीं, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव का प्रेम मोक्षमार्ग में ही होता है, गृहस्थी में नहीं होता है। सम्यग्दृष्टि मरकर कहाँ-कहाँ पैदा नहीं होता ? सर्वोत्तम सुख एवं सर्वधर्म का मूल । प्रथम नरक बिन षड् भू ज्योतिष, वान भवन पंढ नारी । थावर विकलत्रय पशु में नहिं, उपजत सम्यक् धारी ।। तीन लोक तिहुँ काल माहि नहिं, दर्शन सो सुखकारी । सकल धरम को मूल यही, इस बिन करनी दुखकारी ।।१६।। शब्दार्थ-प्रथम नरक = पहला नरक । षड् भू = छ: पृथ्वी । ज्योतिष = ज्योतिषी देव । वान - व्यन्तर देव । भवन - भवनवासी देव । पंढ = नुपंसक । नारी = स्त्री 1 विकलत्रय = दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और

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