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छहदाला
उत्तर-बार बार काम में आनेवाली वस्तुएँ, जैसे—बत्रादि उपभोग कहलाती हैं।
बारह व्रत याचार, न न लायै । . . . . . मरण समय संन्यास धार, तसु दोष नशावै ।। यों श्रावक व्रत पाल, स्वर्ग सोलम उपजावै । तहत चय नर-जन्म पाय, मुनि है शिव जावै ।।१४।।
शब्दार्थ-अतीचार = दोष । पन = पाँच । संन्यास = समाधि । नशावै = नष्ट करना । श्रावक = पंचम गुणस्थानवर्ती व्रती । सोलम = सोलहवें । उपजावं = पैदा होना । चय = मरकर | शिव जावं = मोक्ष जाता है।
___ अर्थ—जो बारह व्रतों की पाँच-पाँच अतीचार को नहीं लगाते हुए पालता है और अन्त समय समाधिमरण धारण कर उसके दोषों को दूर करता है वह इस प्रकार श्रावक के व्रतों को पालन कर सोलहवें स्वर्गपर्यन्त पैदा होता है । वहाँ से आकर मनुष्य भव धारण कर मुनि होकर मोक्ष जाता है ।
प्रश्न १–अतीचार किसे कहते हैं ? उत्तर--व्रत का एकदेश भंग होना अतीचार है । प्रश्न २-बारह व्रत कौन से हैं ? उत्तर-५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत और ४ शिक्षाद्रत कुल १२ व्रत होते हैं | प्रश्न ३–संन्यास किसे कहते हैं ?
उत्तर-उपसर्ग आने पर, दुर्भिक्ष पड़ने पर, बुढ़ापा होने पर, असाध्य रोग जिसका कोई प्रतिकार नहीं हो ऐसा होने पर धर्म के लिए शरीर का त्याग करना, समाधि या सल्लेखना की जाती है । कषाय सल्लेखनापूर्वक काय सल्लेखना की जाती है।
प्रश्न ४-मुनि के भेद कितने हैं ? उत्तर-(१) भावलिंगी और (२) द्रयलिंगी । प्रश्न ५-मुनि की बाह्य पहचान क्या है ?
उत्तर-(१) पिच्छी-कमण्डलु, (२) नग्नता, (३) केशलाच, (४) संस्कार रहित शरीर और (५) खड़े-खड़े आहार लेना । (हाथों में) । (६) पैदल विहार ।
प्रश्न ६–पत्र के कितने भेद हैं ?