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छहढाला
प्रश्न ३ – सुख किसे कहते है वह वही मिलता है ? उत्तर—आह्लादस्वरूप जीव की परिणति को सुख कहते हैं । सुख आत्मा की वस्तु है । वह आत्मा में हैं कहीं बाहर नहीं मिलता है ।
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(१) अनित्य भावना
जोबन गृह गोधन नारी, हम गय जन आज्ञाकारी । इन्द्रिय भोग छिन थाई, सुरधनु चपला चपलाई ।। ३ ।। शब्दार्थ - जोबन = जवानी | गृह घर । गोधन - गाय-भैंस | नारी - स्त्री । हय = घोड़ा गय= हाथी । जन = कुटुम्बी | आज्ञाकारी = नौकर-चाकर | छिन थाई = क्षणभंगुर । सुरधनु = इन्द्रधनुष । चपला = बिजली | चपलाई = चंचलता !
अर्थ---- जवानी, घर, गाय-भैंस, रुपया-पैसा, स्त्री, घोड़ा, हाथी, कुटुंबी जन, नौकर-चाकर, पाँचों इन्द्रियों के भोग, इन्द्रधनुषी और बिजली की चंचलता के समान क्षणभर रहने वाले हैं ।
प्रश्न १ – यौवन, घर, मकान आदि तथा इन्द्रियों के भोगादि कैसे हैं ? उत्तर - यौवन, हाथी, घोड़ा, मकान, इन्द्रिय भोगादि सब क्षणिक हैं। इन्द्रधनुष के समान अथवा बिजली की चंचलता के समान क्षणभंगुर हैं । प्रश्न २ – बाह्य पदार्थों से प्राप्त सुख वास्तविक है या नहीं ? उत्तर – बाह्य पदार्थों से प्राप्त सुख, सुख नहीं वह तो 'सुखाभास' जैसा प्रतीत होता है पर वास्तविक नहीं हैं। क्योंकि वही है जिसके पीछे दुःख नहीं है । ये इन्द्रियजन्य सुख कुछ क्षण अच्छे लगते हैं पर बाद
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सुख
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में पीड़ा देते हैं इसलिए ये वास्तविक सुख नहीं हैं ।
प्रश्न ३ – अनित्य भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर - संसार में कोई वस्तु नित्य स्थायी नहीं हैं ऐसा विचार करना, बार-बार चिन्तन करना अनित्य भावना है ।
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