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षष्ठम ढाल अहिंसादि ४ महान्द्रतों का लक्षण
(हरि गीता छन्द) षट्काय जीव न हननतें, सबविध दरब हिंसा टरी । रागादि भाव निकातें, हिंसा न भामित असहरी ।। जिनके न लेष मृषा, न जल मृग हू बिना दीयो गहैं । अठदश सहस विध शील घर, चिद्ब्रह्म में नित रमि रहें ।।१।।
शब्दार्थ-षट् काय = पाँच स्थावर और एक त्रसकाय । हननतें = मारने से । सब विध = सब प्रकार । दरब हिंसा = द्रव्य हिंसा । टरी = दूर हो जाती है । रागादिभाव = रागद्वेषादि । निवारतें = नष्ट होने से । भावित = भाव हिंसा । न अवतरी = नही होती हैं । लेश = थोड़ी भी । मृषा = झूठ । मृण = मिट्टी । गहै = ग्रहण करना । अठदश = अठारह । सहस = हजार । चिद्ब्रह्म = आत्मा : रमि रहें = लीन हो जाना ।
__ अर्थ छह प्रकार के जीवों को हिंसा न करने से सब प्रकार की द्रव्यहिंसा दूर हो जाती है । और रागद्वेषादि भावों के नष्ट होने से भावहिसः भी नहीं होती है।
(१) अहिंसा महाव्रत-द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा के पूर्ण अभाव होने को अहिंसा महाव्रत कहते हैं ।
(२) सत्य महाव्रत-थोड़ा भी झूठ नहीं बोलने को सत्य महाव्रत कहते हैं ।
(३) अचौर्य महाव्रत-पानी और मिट्टी भी बिना दिये ग्रहण नहीं करना अचौर्य महाव्रत है।
(४) ब्रह्मचर्य महाव्रत-अठारह हजार शील के भेदों को धारण कर अपनी आत्मा में लीन होना ब्रह्मचर्य महाव्रत है।
प्रश्न १-षट्काय जीवों का नाम बताइए ?
उत्तर-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक ।