Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 88
________________ छहवाला प्रश्न २--द्रव्य हिंसा किसे कहते है । उत्तर-षट्काय के जीवों का घात करना या विराधना करना द्रव्य हिंसा है । प्रश्न ३---भाव हिंसा किसे कहते हैं ? उत्तर--राग-द्वेदि विकार परिणत्ति को भाव हिंसा कहते हैं । प्रश्न ४--शील किसे कहते हैं ? उत्तर-(१) शील स्वभाव को कहते हैं। (२) स्त्री मात्र का त्याग अखण्ड शोलव्रत कहलाता है । (३) अपनी स्त्री को छोड़कर अन्य सभी को माता, बहिन या पुत्री के समान देखना एकदेश शीलवत है । प्रश्न ५–१८ हजार प्रकार का शील बताइए ? उत्तर-~~-शील के १८ हजार भेद १० प्रकार मैथुन कर्म व उसकी १० अवस्थाएँ । इनका परस्पर गुणा करने पर १०x१०=१०० भेद होते हैं । यह मैथुन ५ इन्द्रियों से होता है अतः १००४५-५०० । तीनों योगों से गुणा करने पर ५००४३=१५०० भेद होते हैं । इनका कृत, कारित, अनुमोदना से गुणा करने पर १५००४३ = ४५०० होते हैं और जागृत तथा स्वप्न दोनों अवस्थाओं में होने से ४५००४२-९००० भेद होते हैं । तथा चेतन-अचेतन दो तरह की स्त्रियों के होने से गुणित करने पर ९०००x२= १८००० शील के भेद हो जाते हैं । परिग्रह त्याग महाव्रत एवं पाँच समिति अन्तर चतुर्दश भेद बाहर, संग दशधा ते टलैं । परमाद तजि चउ कर मही लखि, समिति ईर्या तैं चले ।। जग सुहित कर सब अहित हर, श्रुति सुखद सब संशय हरै। भ्रम रोग हर जिनके वचन, मुख चन्द्रनै अमृत झरे ।। शब्दार्थ-~अन्तर = अन्तरंग | चतुर्दश = चौदह । बाहर = बहिरंग । संग = परिग्रह । दशधा = दस प्रकार । टलैं = दूर रहते हैं | परमाद = आलस्य । तजि = छोड़कर । चउ = चार । कर = हाथ । मही = पृथ्वी । लखि = देखकर । सुहित = कल्याण । अहित = बुराई । हर = दूर

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