Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 77
________________ छहढाला (३) ससार भावना = = सब चहुँगति दुःख जीव भर हैं, परिवर्तन पंच करे हैं । सब विधि संसार असारा, यामें सुख नाहिं लगारा ३५|| शब्दार्थ - चहुँ गति चारों गतियाँ । भरै = भोगते । सब विधि प्रकार से । असारा = सार रहित । यामें इसमें । लगारा = थोड़ा भी । अर्थ — जीव चारों गतियों के दुःखों को भोगते हुए पाँच परिवर्तनों को करता रहता हैं । यह संसार इस तरह असार हैं। इसमें थोड़ा भी सार नहीं है। प्रश्न १ – संसार भावना किसे कहते हैं ? ७५ उत्तर - सारहीन दुःखों से भरे हुए इस संसार में कहीं भी चैन नहीं है, ऐसा विचार करना संसार भावना है। प्रश्न २ -- गति किसे कहते हैं, वे कितनी होती हैं ? उत्तर -- गति नामकर्म के उदय से जीव की अवस्थाविशेष को गति कहते हैं । गति ४ हैं – (१) मनुष्य गति, (२) देव गति, (३) तिर्यच गति और (४) नरक गति । प्रश्न ३ - परिवर्तन कितने होते हैं ? उनका स्वरूप संक्षेप में बताओ । उत्तर--(१) द्रव्य परिवर्तन, (२) क्षेत्र परिवर्तन, (३) काल परिवर्तन, (४) भाव परिवर्तन और (५) भव परिवर्तन | इस प्रकार ५ परावर्तन होते हैं । (१) द्रव्य परिवर्तन कर्म और नोकर्मस्वरूप पुद्गल वर्णनाओं को ग्रहण करना और छोड़ना द्रव्य परिवर्तन है । (२) क्षेत्र परिवर्तन - सर्व आकाश प्रदेशों में जन्म-मरण करना क्षेत्र परिवर्तन है । (३) काल परिवर्तन - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के सर्व समयों में जन्म-मरण करना काल परिवर्तन है । (४) भाव परिवर्तन - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट बन्ध रूप स्थिति बन्ध होना भाव परिवर्तन है । -- (५) भव परिवर्तन - - सम्पूर्ण आयु के विकल्पों में जन्म-मरण ग्रहण करना भव परिवर्तन है । KAJAL प्रश्न ४ – संसार किसे कहते हैं ? उत्तर - कोयले को कितना भी घिसो काला हो काला है। प्याज को

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