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छहढ़ाला आदि से अपवित्र है । इसमें ग्नानि पैदा करनेवाले १ द्वार हमंशा बहते हैं, ऐसे शरीर से कैसे प्रीति करनी चाहिये ।
प्रश्न १...अशुचि भावना का चिन्तन कैसे करें ?
उत्तर- यह शरीर मांस, खून, पांव आदि ग्लानिदायक वस्तुओं का घर है । हर तरह अपवित्र है, प्रीति के योग्य नहीं हैं, रेसा विचार करते हुए अशुदि भावना का निन्तन करना चाहिये ।
प्रश्न २–इसके चिन्तन से क्या लाभ है ?
उत्तर-इसके चिन्तन से शरीर एवं भोगों से विरक्ति होती है । वैराग्य दृढ़ होता हैं।
प्रश्न ३–सात कुधातुओं के नाम बताइए ?
उत्तर-(१) रस, (२) रुधिर, (३) मांस, (४) मंद, (५) अस्थि, (६) मज्जा और (७) वीर्य ।।
प्रश्न ४-नव मलद्वारों के नाम बताइए?
उत्तर--नव मलद्वार-दो आँखें, दो नाक के छिद्र, एक मुख, एक गुदा, एक मूत्रेन्द्रिय और दा कान = २२ मलद्वार ।
(७) आस्लव भावना जो जोगन की चपलाई, तातें है आस्रव भाई । आस्रव दुःखकार घनेरे, बुषिवन्त तिन्हें निरवेरे ।।९।।
शब्दार्थ-जोगन की = मन, वचन, काय की । चपलाई = चंचलता । आस्रव = कर्मों का आना । हैं = होता है 1 घनेरे = अधिक । न्बुधिवन्त = विद्वान, चतुर । निरवरे = त्यागना ।
अर्थ है भाई ! मन, वचन, काय की चंचलता से आस्रव होता है, उस आस्रव से अधिक दुःख होते हैं, इसलिये बुद्धिमान, चतुरं मनुष्य उनको दूर करे । ऐसा विचार करना आस्रव भावना है ।
प्रश्न १–योग किसे कहते हैं ?
उत्तर—मन, वचन, काय क निमित्त से आत्म प्रदेशों का हलनचलन योग कहलाता है ।
प्रश्न २–आस्रव किसे कहते हैं ?