Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 82
________________ ८० छहठ्ठाला प्रश्न ४ – पाप किसे कहते हैं ? उत्तर - अशुभोपयोग रूप क्रिया को पाप कहते हैं । प्रश्न ५ - अशुभोपयोग किसे कहते हैं ? उत्तर---विषय, कषाय आदि को ओर त्रियोग की प्रवृत्ति अशुभ योग कहलाती है । प्रश्न ६ – संवर किसे कहते हैं ? उत्तर - आस्रवों का निरोध करना या रोकना संवर कहलाता है । (९) निर्जरा भावना निज काल पाथ विधि झरना, तासों निज काज न सरना । तप कर जो कर्म खिपावें, सोई शिव सुख दरसावें ।। ११ ।। शब्दार्थ — निज काल अपनी स्थिति । झरना = नष्ट होना । निज काज = अपना मतलब | सरना = सिद्ध होना । खिपावैं = नष्ट करता हैं। दरसावें दिखाता है । 1 = अर्थ - अपना समय पाकर कर्मों का नष्ट होना सविपाक - अविपाक निर्जरा है। उससे अपना लाभ नहीं होता । तप के द्वारा जो कर्म नष्ट होते हैं वह अविपाक या सकाम निर्जरा है। वह मोक्ष का सुख दिखाती है। ऐसा विचार निर्जरा भावना है । प्रश्न १ – निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर - ( तप के द्वारा) एकदेश कर्मों का खिर जाना निर्जरा है । प्रश्न २-निर्जरा के कितने भेद हैं ? उत्तर -- (१) अकाम निर्जरा और (२) सकाम निर्जरा । अथवा (१) सविपाक निर्जरा और (२) अविपाक निर्जरा । प्रश्न ३ --- अकाम निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर- -अपनी-अपनी स्थिति पूर्ण करके कर्मों का झरना सविपाक या अकाम निर्जरा कहलाती है। जैसे— कैरी अपना समय आने पर हो पकती ―

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