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शिक्षा व्रत धर उर समताभाव, सदा सामायिक करिये । पर्व चतुष्टय माहिं, पाप तज प्रोषध धरिये ।। भोग और उपभोग, नियम कर ममतु निवारै । मुनि को भोजन देय, फेर नित करहि अहारै ।।१३।।
शब्दार्थ-उर = हृदय । समतःभाव - राग-द्वेष का अभाव । धर = धारण करके | सामायिक = आत्मध्यान । करिये = करना चाहिए : पर्व = पवित्र दिन । चतुष्टय - चार दिन ( दो अष्टमी, दो चतुर्दशी ) । प्रोषध :उपवास ( एकासन सहित उपवास ) । भोग = जो एक बार भोगने में आवे । उपभोग = बार-बार भोगने में आके । नियम = मर्यादा । ममतु = मोह, ममता | निवारें - दूर करना । फेर = बाद में । मुनि - दिगम्बर साधु | अहारै = भोजन ।।
अर्थ(१) हृदय में समताभाव धारण करके हमेशा आत्मध्यान करना सामायिक शिक्षाद्रत है ।
(२) एक माह के चार पर्वो में पाप-कार्यों का त्याग करके प्रोषध करना प्रोषधोपवास है।
(३) भोग और उपभोग की वस्तुओं का नियम करके उनमें ममत्व का त्याग करना देशावकाशिक शिक्षाव्रत है ।
(४) दिगम्बर साधुओं, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक एवं त्यागी व्रतियों व साधर्मियों को भोजन देकर फिर स्वयं आहार करना वैय्यावृत्त नामक शिक्षाव्रत है । इसी को अतिथिसंविभाग व्रत भी कहते हैं ।
प्रश्न १–शिक्षाव्रत किसे कहते हैं ? उत्तर-मुनिव्रत पालने की शिक्षा देनेवाले व्रत शिक्षाव्रत कहलाते हैं । प्रश्न २.--शिक्षाव्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर-शिक्षाव्रत के चार भेद हैं--(१) सामायिक, (२) प्रोषधोपवास (३) भोगोपभोगपरिमाष्प और (४) अतिथिसंविभाग ।
प्रश्न ३-भोग किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो एक बार ही काम में आ सकनेवाली वस्तु है, जैसेभोजन आदि भोग है ।
प्रश्न ४.. -उपभोग किसे कहते हैं ?