Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 68
________________ छहढ़ाला (३) अपनी शक्ति का विचार करते हुए थोड़ा परिग्रह रखना परिग्रहपरिमाण अणुव्रत है। (४) दसों दिशाओं में आने-जाने की मर्यादा करके फिर उस सीमा का उल्लंघन नहीं करना दिग्द्रत है । प्रश्न १-दालत क्या है ? उत्तर-दिग्बत-गुणव्रत का एक भेद है । प्रश्न २-गुणव्रत किसे कहते हैं ? इनके कितने भेद हैं ? उत्तर-अणुव्रत और मूलगुणों को दृढ़ करनेवाले व्रत अणुव्रत कहलाते हैं । इनके तीन भेद हैं—(१) दिग्वत, (२) देशव्रत, (३) अनर्थदण्डव्रत । प्रश्न ३---दस दिशाओं के नाम बताओ? उत्तर---दस दिशाएँ---(१) पूर्व, (२) पश्चिम, (३) उत्तर, (४) दक्षिण, (५) ईशान, (६) गायव्या, (७) नात्या, (८) आग्नेय, (९) ऊर्ध्व और (१०) अधः । ताहू में फिर ग्राम, गली गृह बाग बजारा । गमनागमन प्रमाण ठान, अन सकल निवारा।। काह की धन हानि, किसी जय-हार न चिन्तै 1 देय न सो उपदेश, होय अघ बनज कृषीतें ।।११।। शब्दार्थ--ताहू में = दिग्बत में । बाग = बगीचा । बजारा - बाजार । गमनागमन = आना-जाना । अन = अन्य । निवारा - त्यामना । काह - किसी । जय = जीत । हानि = नुकसान । हार = पराजय । चिन्तै = चिन्तवन करना । देय = देना । अघ = पाप । बनज = व्यापार | कृषी = खेती । अर्थ-दिग्द्रत में की हुई मर्यादा के भीतर किसी गाँव, गली, घर, बाग, बाजार तक नियत समय के लिए आने-जाने का प्रमाण करके उसके बाहर नहीं जाना देशव्रत है । (१) किसी के धन की हानि, किसी को जीत, किसी की हार होने का चिन्तवन नहीं करना अपध्यान नामक अनर्थदण्डवत है। (२) जिसमें ज्यादा पाप बन्ध होता है ऐसी खेती, व्यापार आदि के करने का उपदेश नहीं देना सो पापोपदेश नामक अनर्थदण्डव्रत है ।

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