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छहढाला
प्रश्न ९ - सत्गणव्रत का लक्षण बताः ?
उत्तर- स्थूल झूठ का त्याग करना तथा दूसरे जीवों को दुःखदायक, घातक, कड़े, निन्द्य, अयोग्य वचन नहीं कहना सत्याणुव्रत हैं .
प्रश्न १० ....अहिंसाणुव्रती की विशेषता बताइए ?
उत्तर---अहिंसाणुव्रती किसी भी जीव को संकल्पपूर्वक नहीं मारता हैं । किन्तु आरम्भी, उद्योगी और विरोधी हिंसा का त्यागी नहीं होता है ।
प्रश्न ११–हिंसा किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रमाद और कषाय के निमित्त से जहाँ स्व-पर के प्राणों का घात किया जाता हैं वहाँ हिंसा कहलाती है । प्रमाद और कषाय के अभाव में प्राणघात होने पर भी हिंसा का दोष नहीं लगता है ।
प्रश्न १२-हिंसा के कितने भेद हैं ?
उत्तर-(१)--संकल्पी, (२) आरम्भी, (३) उद्योगी, (४) विरोधी या द्रव्याहिंसा, मावहिंसा ।
जल मृतिका बिन और, नाहिं कछु गहै अदत्ता। निज वनिता बिन सकल, नारि सो रहै विस्ता ।। अपनी शक्ति विचार, परिग्रह थौरौ राखे । दशदिश गमन प्रमान ठान, तसु सीम न नाखै ।।१०।।
शब्दार्थ-मृतिका = मिट्टी । गहे = लेना । अदत्ता = बिना दी हुई । निज - अपनी । वनिता = स्त्री । नारि सों = स्त्रियों से । विरता = अलग, दूर रहना । शक्ति = सामर्थ्य | विचार = सोचकर । थौरौं = थोड़ा । परिग्रह = आडम्बर । राखे = रखना । दशदिश = दशों दिशा । गमन = जाना । प्रमाण = मर्यादा 1 लान = रखकर । तसु = उस । सीम = मर्यादा । न नाखें -- नहीं लाँघना । ___ अर्थ-(१) जल. और मिट्टी के अलावा अन्य कोई वस्तु बिना दी हुई लेना अचौर्याणुव्रत है।
(२) अपनी स्त्री के सिवाय अन्य स्त्रियों से विरक्त रहना ब्रह्मचर्याणुव्रत हैं।