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छहढ़ाना शब्दार्थ----मोक्ष महल = मोक्ष मंदिर । परथम = पहली ! मोदी = . . पैड़ी । सम्यक्ता = समीचीनपना । लहै = पाता है । भव्य = भव्यजीव । पवित्र = निर्दोष । 'दौल' = ग्रन्थकर्ता दौलतरामजी । चेत = सावधान हो। काल = समय । वृथा = बेकार । नरभव = मनुष्य पर्याय । कठिन = दुर्लभ ।
अर्थ—यह सम्यग्दर्शन मोक्षरूपी महल की पहली सीढ़ी है । इसके बिना ज्ञान और चारित्र सच्चे नहीं कहला सकते । इसलिए हे भव्य जीवो ! इस निर्दोष सम्यग्दर्शन को धारण करो । हे दौलतराम ! समझो, सुनो, चेतो । यदि तुम सयाने हो तो समय को व्यर्थ बरबाद मत करो । अगर सम्यग्दर्शन नहीं हुआ तो इस मनुष्य पर्याय को पाना बहुत दुर्लभ है ।
प्रश्न १–मोक्ष महल की पहली सीढ़ी कौन-सी है और क्यों ?
उत्तर–सम्यग्दर्शन मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी है क्योंकि सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान और चारित्र की कोई कीमत नहीं है । समीचीनता नहीं रहती है ।
प्रश्न २--ग्रन्थकर्ता कौन है ? उन्होंने किसे सम्बोधित किया है ?
उत्तर--अन्यकर्ता पं० दौलतरामजी हैं, उन्होंने अपने-आपको सम्बोधित किया है।
प्रश्न ३-मानव पर्याय में सम्यक्त्व नहीं प्राप्त किया तो क्या हानि है ? उत्तर-फिर मानव पर्याय की प्राप्ति अत्यन्त कठिन हो जायेगी ।