Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 61
________________ छहढ़ाला शरीर व उपकरण आदि की शोभा बढ़ाने को कुछ इच्छा रखते हों, उन्हें बकुश कहते हैं। कुशील-~-मुनि दो प्रकार के होते हैं—एक प्रतिसेवनाकुशील और दूसरे कषायकुशील । प्रतिसेवनाकुशील-जिनके उपकरण तथा शरीरादि से विरक्तता न हो और मूलगुण तथा उत्तरगुण की परिपूर्णता है, परन्तु उत्तरगुणों में कुछ विराधना दोष हों, उन्हें प्रतिसेवनाकुशील कहते हैं । ___ कषायकुशील—जिन्होंने संज्वलन के सिवाय अन्य कषायों को जीत लिया हैं, उन्हें कषायकुशील कहते हैं । निर्ग्रन्थ-जिनका मोहकर्म क्षीण हो गया हो ऐसे बारहवें गुणस्थानवर्ती मुनि निम्रन्थ कहलाते हैं । स्नातक–समस्त घातिया कर्मों का नाश करनेवाले केवली भगवान स्नातक कहलाते हैं। प्रश्न १०–ौवेयक क्या हैं ? उत्तर-सोलह स्वर्गों से ऊपर के अहमिन्द्रों के नौ स्थान नव |वेयक कहलाते हैं। तातें जिनवर कथित तत्त्व अभ्यास करीजे । संशय विभ्रम मोह त्याग, आपो लख लीजै ।। यह मानुष-पर्याय, सुकुल सुनिवो जिनवानी । इहविध गये न मिले, सुमणि ज्यों उदधि समानी ।।५।। शब्दार्थ-जिनवर = जिनेन्द्र भगवान । कथित = कहे हुए । तत्त्व = जीवादि पदार्थ । अभ्यास = पठन-पाठन । करीजै = करना चाहिये । संशय = सन्देह । विभ्रम = विपर्यय । मोह - अनध्यवसाय । आपो = आत्मा को । लख लीजै = पहचानना चाहिये । मानुष पर्याय = मनुष्य भव । सुकुल = उत्तम कुल । सुनिबो = सुनना । जिनवानी = जैनशास्त्र । इहविध = इस प्रकार | सुमणि = चिन्तामणि रत्न । उदधि - समुद्र । समानी = गिरी हुई। अर्थ—इसलिए जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे हुए जीवादि पदार्थों पर

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