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छहढ़ाला
शब्दार्थ- समाज = कुटुम्ब । गज = हाथी । बाज़ = घोड़ा । राज = प्रभुता । काज = काम । अचल = स्थिर । रहावे = हो जाती हैं । स्त्रपर = अपना और पराया । सिटेक = ज्ञान ! बवानौ = कहा गया है ! उपाय = प्रयत्न । बनाय = बना करवे । ___ अर्ध-धन-कुटुम्बी, नौकर-चाकर, हाथी-घोड़ा, राज्य आदि कोई भी अपने काम में नहीं आते हैं । ज्ञान जो अपनी आत्मा का स्वरूप है उसके हो जाने पर यह आत्मा स्थिर हो जाती है । उस सम्यग्ज्ञान का कारण अपना और पर का भेद ज्ञान कहा गया है । इसलिए हे भव्य जीवो ! करोड़ों उपाय द्वारा भी उस सम्यग्ज्ञान को हृदय में धारण करो ।
प्रश्न १–सम्यग्ज्ञान का मूल कारण कौन है ? उत्तर-"स्व-पर विवेक"-भेदज्ञान उस सम्यग्ज्ञान का कारण है | प्रश्न २--सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति की महिमा क्या है ?
उत्तर-“कोटि उपाय बनाय भव्य ताको उर आनो" धन, समाज, परिवार, हाथी-घोड़ा सभी क्षणभंगुर हैं । एकमात्र ज्ञान ही शाश्वत है इसलिए भव्यजीवों को करोड़ों उपाय करके भी उस ज्ञान की प्राप्ति का प्रयत्न करना चाहिये।
जे पूरब शिव गये, जाँहि अरु आगे जै है । सो सब महिमा ज्ञानतनी, मुनिनाथ कहै हैं ।। विषय-चाह दव-दाह, जगतजनं अरनि वझावै ।
तास उपाय , आन, ज्ञान घनघान 'बुझावै ।७।। 'शब्दार्थ----पूरब = पहले । जाँहि = जा रहे हैं । आगे = भविष्य में । जैहैं = जायेंगे । सो = वह । महिमा = महत्त्व । ज्ञानतनी = ज्ञान संबंधी । मुनिनाथ = गणधरादि पुरुष । दव-दाह = दावानल (जंगल की अग्नि) । आन = दूसरा | घनघान = मेघों का समूह | बुझावै = शांत करता है ।
अर्थ---जो पहले मोक्ष गये, आगे भविष्य में जायेंगे यह सब सम्यग्ज्ञान का प्रभाव हैं । ऐसा गणधरादि श्रेष्ठ पुरुष कहते हैं । विषयों की चाहरूपी भयङ्कर दावाग्नि संसार जीवरूपी जंगल को जला रहा है उसकी शांति का दूसरा उपाय नहीं है । वेवलज्ञानरूपी मेघों का समूह ही उसे बुझा सकता है ।