Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ ५८ छहढाला महाव्रतों को निरतिचार पालन करके अनन्त बार नवें ग्रैवेयक में उत्पन्न हो सकता है 1 प्रश्न ४ – द्रव्यलिंगी मुनि किसे कहते हैं ? उत्तर - जो जीव बाह्य में दिगम्बर मुद्रा को धारण कर महाव्रतादि का पालन करता है परन्तु उनके रत्नत्रय रूप भेद विज्ञान की सिद्धि नहीं हुई हो उसे द्रव्यलिंगी मुनि कहते हैं । प्रश्न ५ -- अभव्य जीव किसे कहते हैं ? उत्तर --- जिस जीव को महाव्रत रूप धर्म का संयोग मिलने पर भी सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र को प्रकट करने की योग्यता नहीं होती है जैसे बन्ध्या स्त्री ठर्रा मूँग । -क्या भव्य जीव अनन्त बार मुनिव्रत ग्रहण नहीं कर सकता है ? उत्तर - नहीं ! क्योंकि भव्य जीव को इस प्रकार के महाव्रतों का संयोग मिलने पर उसे सिद्धावस्था मिले बिना नहीं रहेगी। हाँ इतना अवश्य है कि भव्य जीव ३२ बार तक भावलिंगी मुनि बन सकता है इससे सिद्ध होता है कि भव्य जीव अनन्त बार मुनिव्रतों को धारण नहीं करता । प्रश्न ७ – भावलिंगी मुनि किसे कहते हैं ? उत्तर – जिस भव्य जीव ने बाह्य में दिगम्बर मुद्रा धारण करके अंतरंग में रत्नत्रय की शक्ति को भेद - विज्ञान द्वारा प्रकट कर लिया है अथवा जिन्हें स्वात्म तत्त्व का अनुभव हो गया हो उन्हें भावलिंगी मुनि कहते हैं । प्रश्न ८ - भावलिंगी मुनि की पहचान क्या है ? उत्तर - भावलिंगी मुनि की पहचान केवलीगम्य हैं। प्रश्न ९ -- भावलिंगी मुनि के भेद व लक्षण बताइए ? उत्तर --- भावलिंगी मुनि के पाँच भेद हैं- ( १ ) पुलाक, (२) बकुश, (३) कुशील, (४) निर्ग्रन्थ और (५) स्नातक । काल में पुलाक- जो उत्तर गुणों की भावना से रहित हो तथा किसी क्षेत्र व मूल में भी दोष लगावें, इन्हें पुलाक कहते हैं । कुश -- जो मूल गुणों का तो निर्दोष पालन करते हों परंतु अपने प्रश्न ६. -

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118