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चतुर्थ ढाल
सम्यग्ज्ञान का लक्षण व समय सम्यक् श्रद्धा धारि पुनि, सेवहु सम्यग्ज्ञान ।
स्वपर अर्थ बहु धर्म जुत, ज्यों प्रकटावन भान ।। शब्दार्थ—सम्यक् = सच्चा । श्रद्धा = दर्शन | पुनि = बाद में । सेवहु = धारण करो । सम्यग्ज्ञान = सच्चा ज्ञान | स्वपर अर्थ = स्व और पर पदार्थ । बहुध f ji = अनेक धर्मों से मुक्त । ज्यों में बसे । प्रकटावन = प्रकाशित करने वाला । भान = सूर्य ।
अर्थ—सम्यक्दर्शन धारण करने के बाद सम्यग्ज्ञान को धारण करना चाहिए। क्योंकि वह सम्यग्ज्ञान अनेक धर्मों से सहित स्व और पर-पदार्थों को प्रकाशित करने के लिए सूर्य के समान है ।
प्रश्न १--सम्यग्ज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर-अनेक धर्मात्मक स्व और पर पदार्थों को ज्यों-का-त्यों जानने वाला ज्ञान सम्यग्ज्ञान है ।।
प्रश्न २–स्व पदार्थ कौन से हैं ? उत्तर-जीव और मोक्ष स्वपदार्थ है शेष पर पदार्थ हैं । प्रश्न ३–सम्यग्ज्ञान के भेद बताइए ?
उत्तर-(१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मन:पर्ययज्ञान और (५) केवलज्ञान ।
प्रश्न ४- सम्यग्ज्ञान को सूर्य की उपमा क्यों दी ?
उत्तर-जिस प्रकार सूर्य के उदय होते ही अन्धकार निकल जाता है, उसी प्रकार समीचीन ज्ञान का प्रकाश होते ही अज्ञान-अन्धकार भाग जाता है तथा सूर्य के प्रकाश में सभी पदार्थ जैसे-के तैसे दिखते हैं, उसी प्रकार ज्ञान-सूर्य के प्रकाश में पदार्थों का वास्तविक रूप जैसे-का-तैसा झलकने लगता है । सूर्य और ज्ञान दोनों ही 'तमनाशक हैं', एक अन्तरतम का नाश करता है, दूसरा बाह्यतम का नाश करता है।