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छहढाला
(८) जैनधर्म का प्रचार करते हुए अपनी आत्मा को रत्नत्रय से सुशोभित करना ( सजाना ) प्रभावना अंग है । इनसे उल्टे आठ दोष होते
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आठ मद पिता भूप वा मातुल नृप जों, होय न तो मद ठाने । मद न रूप को भद न ज्ञान को, धन बल को मद भान ।।१३।। तप को मद न मद प्रभुता को, करै न सो निज जानै । मद धारै तो यही दोष वसु, समकित को मल ठाने ।।
शब्दार्थ-भूप = राजा । मातुल = मामा । नृप = राजा । ठाने = करना । प्रभूता = बड़प्पन, ऐश्वर्य । धार - करता है । मल = दोष । . अर्यः-१, पिता के होने का मद ) घमण्ड करना =
कुलमद है। (२) मामा आदि के राजा होने का ( मद ) घमण्ड
करना—जातिमद है। (३) शरीर की सुन्दरता का घमण्ड करना--रूपमद है । (४) अपने ज्ञान का अहङ्कार करना—ज्ञानमद हैं । (५) अपनी धन-दौलत पर गर्व करना—धनमद है ।
अपनी ताकत का अभिमान करना-बलमद है । (७) अपने उपवास, तप आदि का घमण्ड करना--
तपमद है। (८) अपनी आज्ञा मान्यता आदि का घमण्ड करना
प्रभुतामद है। जो इन्हें नहीं करता वह अपनी आत्मा को जानता है । मद करने से यही आठ दोष सम्यग्दर्शन को मलिन कर देते हैं ।
प्रश्न १–जाति किसे कहते हैं ? उत्तर—माता के वंश को जाति कहते हैं। प्रश्न २–कुल किसे कहते हैं ? उत्तर-पिता के वंश को कुल कहते हैं ।
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