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छहढाला चक्षु इन्द्रिय का—वण, और कर्ण इन्द्रिय का-- शब्द, ये पाँच इन्द्रिय विषय हैं । प्रश्न ५-खोटे शास्त्र कौन से कहलाते हैं ? उत्तर- (१) जिनमें एकान्त रूप से कथन हो । (२) जिनमें पंचेन्द्रिय विषयों का वर्णन हो ऐसे अश्लील
उपन्यास, नाटक, चोर कथाएँ, खोटी कथाएँ आदि । (३) जिनमें हिंसा में धर्म बताया गया हो । (४) जिनमें पूर्वापर विरोध पाया जाता हो ।
(५) जो सन्देह सहित हो । आदि उपर्युक्त लक्षणोंयुक्त राग-द्वेष बढ़ाने वाले शास्त्र खोटे शास्त्र कहलाते हैं । सज्जनों को इन्हें कभी नहीं पढ़ना चाहिए ।
प्रश्न ६-गृहीत मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर-इस प्रकार खोटे शास्त्रों के अध्ययन से प्राप्त सारा ज्ञान गृहीत मिथ्याज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न ७-कुशास्त्रों के अध्ययन का फल बताइए ।
उत्तर- "कपिलादिरचित श्रुत को अभ्यास, सो है कुबोध बहुदेन त्रास ।" खोटे शास्त्रों का अध्ययन बहुत दु:खों को देनेवाला है ।
गृहीत मिथ्याचारित्र जो ख्याति लाभ पूजादि चाह, धरि करन विविधविध देह दाह । आतम अनात्म के ज्ञानहीन, जे जे करनी तन करन छीन ।।१४।।
शब्दार्थ-ख्याति = प्रसिद्धि । लाभ = फायदा । पूजा = प्रतिष्ठा, इज्जत । चाह = इच्छा । धरि = धारण करके । विविध = नाना । बिध = प्रकार । देह = शरीर । दाहकरन = जलाने वाली । आतम = आत्मा । अनात्म = शरीरादि परवस्तुएँ । ज्ञान = ज्ञान से । हीन = रहित । करनी = क्रियाएँ । तन = शरीर । छीन करन = नष्ट करने वाली ।
अर्थ-जो अपनी प्रसिद्धि, रुपये-पैसे का लाभ, प्रतिष्ठा आदि की चाह से शरीर को जलानेवाली आत्मा और पर वस्तुओं के ज्ञान से रहित