Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 43
________________ छहढाला ४१ प्रश्न ४–आस्रव तत्त्व का लक्षण बताइए? उत्तर—“मन, वच, काय त्रियोगा, मिथ्या अविरति अरु कषाय, परमाद सहित उपयोगा ।" प्रश्न ५-आस्त्रव के भेद बताइए ? उत्तर-५ मिथ्यात्व, १२ अविरति, २५ कषाय, १५ प्रमाद, १५ योग ये आस्रव के भेद हैं। प्रश्न ६–पाँच मिथ्यात्व बताइए ? उत्तर-(१) विपरीत, (२) एकान्त, (३) विनय, (४) संशय, (५) अज्ञान । प्रश्न ७- १५ प्रमाद बताइए? उत्तर- ४ विकथा, ४ कषाय, ५ इन्द्रिय, १ निद्रा और १ स्नेह । प्रश्न ८-१२ अविरति बताइए ? उत्तर-छह काय जीवों को विराधना करना और ५ इन्द्रिय व मन को वश में नहीं करना । आस्रव त्यागोपदेश बंध, संवर, निर्जरा तत्त्व का लक्षण ये ही आतम के दुख-कारण, तातै इनको तजिये । जीव प्रदेश बंधे विधिसों सो, बन्धन कबहुँ न सजिये । शम-दम तें जो कर्म न आयें, सो संवर आदरिये । तप बलतें विधि झरन निर्जरा, ताहि सदा आचरिये ।।९।। शब्दार्थ-जीव प्रदेश - आत्मा के प्रदेश । विधिसों = कर्मों से | बँधे = बँधना । कबहुँ = कभो । सजिये = करना चाहिए । शम = कषायों का उपशम ! दम = इन्द्रिय दमन । आदरिये = आदर करना चाहिए । तप बलतें = तप के प्रभाव से । विधि = कर्म । झरन = दूर होना । ताहि = उस निर्जरा को । आचरिये = प्राप्त करना चाहिए । ____ अर्थ—ये आस्रव ( मिथ्यात्वादि ) जीव को दुःख देते हैं; इसलिए इनको छोड़ना चाहिए । जीव के प्रदेशों और कर्म परमाणुओं का परस्पर एक क्षेत्रावगाह सम्बन्ध हो जाना बन्ध है । ऐसा बन्धन कभी नहीं करना चाहिए । कषायों के उपशम और पंचेन्द्रियों के एवं मन के वश में करने से

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