Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 45
________________ छहढाला ४३ सब सम्यग्दर्शन के कारण हैं । इस सम्यग्दर्शन को अष्ट अंग सहित धारण करना चाहिए । प्रश्न १-~-मोक्ष किसे कहते हैं ? मोक्ष सुख कैसा है ? लना--अष्ट कर्मों से रहित स्तीत की शुद्ध अवस्था को मोक्ष कहते हैं । मोक्ष सुख शाश्वत है और अतीन्द्रिय है एवं अनन्त सुख को करने वाला है। प्रश्न २–मोक्ष में टी० बी०, सिनेमा, अच्छे-अच्छे भोजन, डनलप के गद्दे आदि हैं क्या ? उत्तर-ऐसी सारी सुख-सुविधाएँ नहीं हैं । प्रश्न ३—फिर मोक्ष में सुख कैसे ? उत्तर—टी० बी०, सिनेमा आदि वस्तुओं से मिलने वाला सुख क्षणिक है पर मोक्ष का सुख शाश्वत है । जो भी वहाँ जाता है, सुख में ऐसा मग्न हो जाता है कि फिर लौटकर नहीं आता है। प्रश्न ४-वहाँ खाना-पीना कुछ नहीं है । इन्द्रिय-विषय भी नहीं, सोने को गद्दा नहीं, टी०वी०, सिनेमा नहीं, फिर वहाँ सुख कैसे ? उत्तर-एक राजा था । कई दिनों से सांसारिक कार्यों में उलझा हुआ था । मन-मस्तिष्क सभी परेशान थे । न खाना रुचता, न टी०वी०, न सिनेमा । परेशान था । हे भगवान् ! कुछ क्षण के लिए शान्ति मिल जाये । तभी सायंकाल के समय सब कामों से हटकर एकान्त में सुन्दर उद्यान में मौन-मुद्रा में बैठा हुआ अपने-आपको सुखी मान रहा है । मन प्रफुल्लित है । उस समय न खा रहा है, न पी रहा है, न टी० वी० है, न सिनेमा, जमीन पर बैठा है, फिर भी सुखी है । अन्दर-ही-अन्दर प्रमुदित है, किसी से न बोलना चाहता है, न किसी को देखना चाहता है । अपने-आपमें आनन्द का अनुभव करता है। ___इसी से सिद्ध होता है कि वास्तव में ये सब इन्द्रिय-विषय सुख नहीं, सुखाभास हैं । अतीन्द्रिय सुख ही वास्तविक आनन्द है जो इन्द्रिय-विषयों को गन्ध से भी रहित है । ऐसे शाश्वत सुख का रसास्वादन सिद्ध (मोक्ष में) सदैव करते हैं । सुख न टी० वी० में है, न खाने में है, न पीने में है, सुख तो आत्मा में है।

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