Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ तृतीय ढाल सच्चा सुख और मोक्षमार्ग - नरेन्द्र 3 ) आतम को हित है सुख, सो सुख आकुलता बिन कहिये । आकुलता शिवमाहि न तातें, शिवमग लाग्यो चहिये ।। सम्यग्दर्शन-ज्ञान चरण, शिवमग सो द्विविध विचारो । जो सत्यारथ रूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो ।।१।। शब्दार्थ-आकुलता = व्यग्रता, शल्य, माया-लालसा आदि । शिवमाहि = मोक्ष में । शिवमग = मोक्ष-मार्ग । लाग्यो = लगना । द्विविध = दो प्रकार । सत्यारथ = वास्तविक । व्यवहारो = व्यवहार, निश्चय का कारण । अर्थ- आत्मा का कल्याण सुख हैं । वह सुख आकुलता मिट जाने पर मिलता है आकुलता मोक्ष में नहीं है, अतः मोक्ष-मार्ग में लग जाना चाहिार । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र--इन तीनों की प्राप्ति होना मोक्ष-मार्ग है । वह दो प्रकार का है-(१) निश्चय मोक्ष-मार्ग, (२) व्यवहार मोक्ष-मार्ग है और जो निश्चय का कारण है वह व्यवहार मोक्ष-मार्ग है। प्रश्न १-आत्मा का हित क्या है ? उत्तर-"आतम को हित हैं सुख" आत्मा का हित सुख हैं । प्रश्न २-वह सुख कैसा हैं ? । उत्तर-“सो सुख आकुलता बिन कहिये ।" वह सुख आकुलता रहित होता है । प्रश्न ३–आकुलता कहाँ नहीं है ? उत्तर--"शिवमाहि न" आकुलता मोक्ष में नहीं है । प्रश्न ४–अत: क्या करना चाहिये ? उत्तर—“शिवमग लाग्यो चहिये ।" मोक्ष-मार्ग में लगना चाहिये ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118