Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 36
________________ हाला अर्थ-जिनेन्द्र भगवान् ने जीव, अजोब, आस्त्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष-ये सात दत्त कहें है । इनका जैसा-का-तैसा श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन हैं । इनका ( तत्त्वों का ) सामान्य और विशेष रूप से वर्णन किया जाता है, उसे सुनकर मन में अटल विश्वास करना चाहिए । प्रश्न १–जिनेन्द्रदेव ने तत्त्व कितने बताए हैं ? उत्तर –जिनेन्द्रदेव ने जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष-सात तत्त्व कहे हैं । प्रश्न २–व्यवहार सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर-जीवादि सात तत्त्वों का जैसा-का-तैसा श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन है। प्रश्न ३--सामान्य किसे कहते हैं ? उत्तर-अनेक पदार्थों में समानता से पाया जानेवाला धर्म (गुण) सामान्य कहलाता है । जैसे—अस्तित्व, वस्तुत्व आदि । प्रश्न ४–विशेष किसे कहते हैं ? उत्तर-सब वस्तुओं में न रहकर मुख्य-मुख्य वस्तुओं में रहने वाला धर्म ( गुण ) विशेष कहलाता है । जैसे, जीवद्रव्य में चेतनत्व । जीव के भेद बहिरातम अन्तर आतम, परमातम जीव त्रिधा है । देह जीव को एक गिनै, बहिरातम तत्त्व मुधा है ।। उत्तम मध्यम जघन त्रिविध के, अन्तर आतमज्ञानी । द्विविध संग बिन शुध उपयोगी, मुनि उत्तम निजध्यानी ।।४।। शब्दार्थ-गिर्ने = माने । मुधा = मूर्ख । द्विविध = दो प्रकार । संग = परिग्रह । बिन = रहित । शुध = शुद्ध । उपयोगी = उपयोग वाले । मुनि = महाव्रती दिगंबर साधु । निजध्यानी = आत्मा का ध्यान करनेवाला । अर्थ—जीव के तीन भेद हैं—बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा । अज्ञानी बहिरात्मा, शरीर और आत्मा को एक मानता हैं । अन्तरात्मा के उत्तम, मध्यम और जघन्य–तीन भेद हैं । अन्तरंग व बहिरंग दो प्रकार के परिग्रह से रहित शुद्धोपयोगी मुनिराज उत्तम अन्तरात्मा हैं ।

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