Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 26
________________ २४ छहढाला प्रश्न १ – निर्जरा तत्त्व का विपरीत श्रद्धान बताओ । उत्तर- -" रोके न चाह निज शक्ति खोय ।" प्रश्न २ – मोक्ष तत्त्व की भूल या विपरीत श्रद्धान | उत्तर- " शिवरूप निराकुलता न जोय ।" प्रश्न ३ – तप क्या है ? उत्तर -इच्छा का निरोध तप हैं। तप से निर्जरा होती हैं । प्रश्न ४ – निर्जरा के कितने भेद हैं ? उत्तर - निर्जरा के दो भेद हैं- (१) सविपाक निर्जरा, (२) अविपाक निर्जरा | प्रश्न ५ - सविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर- - उदय में आकर कर्मों का खिर जाना सविपाक निर्जरा है । प्रश्न ६ – अविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? - उत्तर – तपादि के द्वारा संचित कर्मों का एकदेश खिर ( नष्ट होना) जाना अवियाक निर्जरा है । (यहाँ तक गृहीत मिथ्यादर्शन का वर्णन पूरा हुआ) अगृहीत मिथ्याज्ञान याही प्रतीतिजुत कछुक ज्ञान, सो दुखदायक अज्ञान जान ।। ७ ।। शब्दार्थ –याही इस प्रकार । प्रतीति = श्रद्धा या विश्वास जुत = सहित । कछुक = जो कुछ । दुःखदायक I दुःख देनेवाला । अज्ञान = अगृहीत मिथ्याज्ञान । जान = जानना चाहिए । अर्थ--- इस प्रकार सातों तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान सहित जो कुछ ज्ञान होता है उसे अगृहीत मिथ्याज्ञान कहते हैं । - = प्रश्न १ – अगृहीत का अर्थ क्या है ? उत्तर – जो अनादिकाल से चला आ रहा है । अथवा जो स्वभाव से होता है उसे अगृहीत कहते हैं ।

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