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छहढाला
प्रश्न १ – निर्जरा तत्त्व का विपरीत श्रद्धान बताओ । उत्तर- -" रोके न चाह निज शक्ति खोय ।"
प्रश्न २ – मोक्ष तत्त्व की भूल या विपरीत श्रद्धान | उत्तर- " शिवरूप निराकुलता न जोय ।" प्रश्न ३ – तप क्या है ?
उत्तर
-इच्छा का निरोध तप हैं। तप से निर्जरा होती हैं । प्रश्न ४ – निर्जरा के कितने भेद हैं ?
उत्तर - निर्जरा के दो भेद हैं- (१) सविपाक निर्जरा, (२) अविपाक
निर्जरा |
प्रश्न ५ - सविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर- - उदय में आकर कर्मों का खिर जाना सविपाक निर्जरा है ।
प्रश्न ६ – अविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ?
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उत्तर – तपादि के द्वारा संचित कर्मों का एकदेश खिर ( नष्ट होना) जाना अवियाक निर्जरा है ।
(यहाँ तक गृहीत मिथ्यादर्शन का वर्णन पूरा हुआ)
अगृहीत मिथ्याज्ञान
याही प्रतीतिजुत कछुक ज्ञान, सो दुखदायक अज्ञान जान ।। ७ ।। शब्दार्थ –याही इस प्रकार । प्रतीति = श्रद्धा या विश्वास जुत = सहित । कछुक = जो कुछ । दुःखदायक I दुःख देनेवाला । अज्ञान = अगृहीत मिथ्याज्ञान । जान = जानना चाहिए ।
अर्थ--- इस प्रकार सातों तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान सहित जो कुछ ज्ञान होता है उसे अगृहीत मिथ्याज्ञान कहते हैं ।
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प्रश्न १ – अगृहीत का अर्थ क्या है ?
उत्तर – जो अनादिकाल से चला आ रहा है । अथवा जो स्वभाव से होता है उसे अगृहीत कहते हैं ।