Book Title: Chahdhala 1
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 28
________________ २६ छहठ्ठाला भाव प्राणों का = श्रद्धा त्ते = वे । शठ मूर्ख | सेव सेवा । तिन = उनका । भवभ्रमण = संसार में भटकने का । छेव = अन्त । भावहिंसा घात । समेत = सहित | दर्वित द्रव्यहिंसा | खेत = क्षेत्र | सरधै न करने से । लहे = पाता है। अशर्म = दुःख । याकूँ = इसको । गृहोत मिथ्यात्त्व - मिथ्यादर्शन। जान = समझो | अज्ञान - मिथ्याज्ञान | अब = मिथ्याज्ञान को । सुन = सुनो । I प्रश्न १ – गृहीत मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? उत्तर - कुगुरु, कुदेव, कुधर्म का सेवन गृहीत मिथ्यात्व है । r 1 अब । गृहीत = गृहीत | अज्ञान 111 - ww प्रश्न २ -- कुगुरु का लक्षण बताइस् । उत्तर—– “अन्तर रागादि धरै जेह, बाहर धन अम्बर तें सनेह । धार कुलिंग लहि महतभाव, ते कुगुरु |" अर्थात् जो भीतर से राग-द्वेष से युक्त हैं, धन, कपड़ा आदि से मोह करते हैं । खोटं भषों को धारण कर बड़प्पन पाकर साधु कहलाते हैं । वे कुगुरु हैं । प्रश्न ३ – कुगुरु की पूजा भक्ति का फल क्या हैं ? उत्तर---" ते कुगुरु जन्म जल उपलनाव" के कुगुरु पत्थर की नाव के समान होते हैं। जैसे -- पत्थर की नाव यदि समुद्र में चलाई जाय तो स्वयं डूबती है और यात्रियों को भी डुबाती है। उसी प्रकार जो ऐसे कुगुरुओं की भक्ति, पूजा, वन्दनादि करते हैं, उनके वे गुरु भी संसारसमुद्र में डूबते हैं और शिष्यों को भी डुबोते हैं । अर्थात् उनकी भक्ति पूजा पतन का कारण है । प्रश्न ४ – कुदेव का लक्षण बताइये । उत्तर- " जे राग-द्वेष मलकर मलीन, वनिता - गदादि - जुत चिह्न चीन । ते हैं कुदेव ।” अर्थात- जो राग-द्वेषरूपी मैल से मैले हैं, स्त्री, गदा आदि चिह्नों से जो पहचाने जाते हैं वे कुदेव कहलाते हैं । प्रश्न ५ -- कुदेव की सेवा कौन करता है ? उत्तर- "तिनकी जु सेव, शठ करत" कुदेवों की सेवा मूर्ख जीव करते हैं । प्रश्न ६ – कुदेव की सेवा से संसार भ्रमण छूटता हैं या नहीं ?

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