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छहढ़ाला
प्रश्न १–बन्ध तत्त्व की भूल या विपरीतता बतलाओ ?
उत्तर-अपने स्वरूप को भूलकर पुण्योदय में या कर्म के शुभ फल में राग करना, पापोदय या कर्म के अशुभ फल में द्वेष करना ।
प्रश्न २-संवर तत्त्व की भूल बताओ ?
उत्तर-"आतम हित हेतु विराग ज्ञान, ते लखें आपको कष्टदान" आत्मा के हितकारी वैराग्य और ज्ञान को कष्टकारक मानना ।
प्रश्न ३-पुण्य किसे कहते हैं ?
उत्तर---पुनाति आत्मानं इति पुण्य = जो आत्मा को पवित्र करे उसे पुण्य कहते हैं।
प्रश्न ४----पाप किसे कहते हैं ? उत्तर—जो आत्मा का पतन करे उसे पाप कहते हैं । प्रश्न ५-वैराग्य किसे कहते हैं ? उत्तर—संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होने को वैराग्य कहते हैं। प्रश्न ६–ज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो हित की प्राप्ति और अहित का परिहार करे उसे ज्ञान कहते हैं।
निर्जरा और मोक्ष तत्त्व का विपरीत अद्धान रोके न चाह निज शक्ति खोय, शिवरूप निराकुलता न जोय ।
शब्दार्थ न रोके = नहीं रोकता है । चाह = इच्छा । निजशक्ति = आत्मशक्ति को । खोय = खोकर । शिवरूप = मोक्ष का स्वरूप । निराकुलता = आकुलता रहित । न जोय = नहीं मानता है ।
अर्थ--मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादर्शन के प्रभाव से अपनी आत्मशक्ति को खोकर इच्छाओं को नहीं रोकता है । तथा वह मोक्ष के सुख को आकुलता रहित नहीं मानता है ।