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छहढाला
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प्रश्न ६-मिथ्यादर्शन के कितने भेद हैं ?
उत्तर-दो भेद हैं : (१) अगृहीत मिथ्यादर्शन, (२) गृहीत मिथ्या-दर्शन ।
अगृहीत मिथ्यादर्शन का लक्षण जीवादि प्रयोजनभूत तत्त्व, सरधै तिन माहिं विपर्ययत्व ।।१।।
शब्दार्थ--जीवादि = जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष । प्रयोजनभूत = मतलब के । तत्त्व = पदार्थ । सरधै = श्रद्धान करना । तिनमाहिं = उनमें । विपर्ययत्व = उल्टा । ___ अर्थ-जीवादिक मान तत्त्वों में जो प्रयोजनभूत हैं, उनका विपरीत श्रद्धान करना अगृहीत मिथ्यादर्शन है ।
जीव का लक्षण एवं विपरीत श्रद्धान चेतन को है उपयोग रूप, बिन मूरत चिन्मूरत अनूप ।।२।।
शब्दार्थ-चेतन = जीव । उपयोग = ज्ञानदर्शन | रूप = स्वरूप । बिन मूरत = अमूर्तिक । चिन्मूरत = चैतन्यमय । अनूप = उपमा रहित ।
अर्थ-आत्मा का स्वरूप जानना-देखना है । वह मूर्ति रहित, चैतन्यस्वरूप और उपमा रहित है ।
पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनतें न्यारी है जीव चाल । ताको न जान विपरीत मान, करि करें देह में निज पिछान ।।३।।
शब्दार्थ—पुद्गल = अजीव ( पूर्ण गलत स्वभाव वाला ) । नभ - आकाश । धर्म = एक द्रव्य । अधर्म = एक द्रव्य । काल = एक द्रव्य ( इनमें द्रव्यों के लक्षण आगे तीसरे ढाल में बतायेंगे ) । इनतें = इनसे । न्यारी = भिन्न । चाल = प्रवृत्ति । विपरीत = उल्टा । मान = मानना । निज = अपनी । पिछान = पहचान । ताको = उसको ।
अर्थ-अजीव द्रव्य पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन सबसे जीव द्रव्य का स्वरूप भिन्न है । मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादर्शन के प्रभाव से उनको न जानकर उल्टा श्रद्धान कर शरीर को ही आत्मा मानता है । यह जीव तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है।