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द्वितीय ढाल
संसार भ्रमण का कारण (पद्धरि छन्द, १५ मात्रा )
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अच्छी तरह जानकर । बखान =
ऐसे मिथ्या दृग ज्ञान चर्ण, वश भ्रमत भरत दुख जन्म मर्ण । तातें इनको तजिये सुजान, तिन सुन संक्षेप कहूँ बखान ।। १ ।। शब्दार्थ — ऐसे = इस प्रकार । मिथ्या दृग ज्ञान चर्ण = मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र | वश = अधीन । भरत = भोगता है । तातें इसलिए । तजिये = छोड़िए । सुजान वर्णन | कहूँ = कहता हूँ । सुन अर्थ - इस प्रकार यह जीव मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र के वश होकर चारों गतियों में भटकता है और जन्म-मरण के दुःखों को उठाता हैं । इसलिए इनको अच्छी तरह जानकर छोड़ो । उन तीनों का संक्षेप में वर्णन करता हूँ, सो सुनो ।
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सुनो।
प्रश्न १ – मिथ्यादर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर - विपरीत श्रद्धान का नाम मिथ्यादर्शन कहलाता है ।
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प्रश्न २ – मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर – (१) तत्त्वों का विपरीत ज्ञान मिथ्याज्ञान कहलाता है अथवा (२) पर - पदार्थों को अपना मान लेना मिथ्याज्ञान कहलाता है ।
प्रश्न ३ – मिथ्याचारित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर - स्वतः या परोपदेश आदि से विषय-भोगों में प्रवृत्ति तथा झूठे आडम्बर के काम करना मिथ्याचारित्र कहलाता है ।
प्रश्न ५.
प्रश्न ४ – संसार में जन्म-मरण के दुःख उठाने का कारण बताइए । उत्तर - 'ऐसे मिथ्या दृग ज्ञान चर्ण' मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के वश जीव संसार में घूमता हुआ जन्म-मरण के दुःख उठाता है । - जन्म-मरण के दुःखों से छूटने का उपाय क्या है ? उत्तर - मिथ्यादर्शन, ज्ञान और चारित्र को अच्छी तरह समझकर
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इनको छोड़ना ही दुःखों से छूटने का महान उपाय है ।