Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चूर्णप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः (७६१३) शुण्ठ्यादिचूर्णम् (४) इसे इन्हीं ओषधियोंके काथके साथ सेवन ( .. से. । ग्रहण्य.)
| करनेसे समस्त वातज रोग नष्ट होते हैं । शुण्ठी मुस्तं विडङ्गश्च मुरातक्रोष्णवारिणा। (७३१६) शुण्ठयादिचूर्णम् (७) श्लैष्मिकं ग्रहणीदोषं पीतं हन्त्यग्निवर्द्धनम् ॥ (यो. र. । अतिसारा. ; वृ. नि. र.) __ सेठ, नागरमोथा और बायविडंग समान भाग सत्त्वाशुण्ठयोषणं भृङ्गीसमांशं सूक्ष्मचूर्णितम् । ले कर चूर्ण बनावें।
यथासात्म्यं सेवनीयं शीततोयानुपानतः ॥ इसे सुरा, तक्र या उष्ण जलक साथ सेवन सशूलमामदोषं च नाशमायाति सत्वरम् । करनेसे कफज ग्रहणी विकार नष्ट हो कर अग्नि दीत दध्योदनं पथ्यमत्र उचितं रोगशान्तये ॥ होती है।
सेठ, काली मिर्च और भांग (अथवा अतीस) ( मात्रा-२ माशा।)
समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । (७३१४) शुण्ठयादिचूर्णम् (५) इसे शीतल जलके साथ सेवन करनेसे शूल ( यो. र. । स्त्री.)
और आमातिसार शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। शुण्ठीतिरीटयोश्चूर्ण भुक्तं सघृतशर्करम् ।
पथ्य-दही भात । प्रबलं प्रदरं हन्ति नार्या वा कुटजाष्टकम् ॥ (मात्रा-१॥ माशा ।) सांठ और लोध समान भाग ले कर चूर्ण
(७३१७) शुण्ठचादिचूर्णम् (८) बनावें । इसमें खांड मिला कर घीके साथ सेवन करनेसे प्रबल प्रदर रोग भी नष्ट हो जाता है।।
( वृ. मा. । अजीर्णा. ; ग. नि. । अजीर्णा. ५, ( मात्रा--२ माशे।)
भवेदजीर्ण प्रति यस्य शङ्का कुटजाष्टक भी प्रदरको नष्ट कर देता है।
स्निग्धस्य जन्तोलिनोऽनकाले ।
पूर्व सशुण्ठीमभयामशको (७३१५) शुण्ठ्यादिचूर्णम् (६) भुञ्जीत सम्भाश्य हितं हिताशी ।। ( वृ. नि. र. । वातव्या.)
यदि अजीर्णका सन्देह हो और रोगी बलवान शुण्ठीमरिचदारूणां चूर्ण क्वाथस्य पानतः। हो तथा उसका कोष्ठ भी स्निग्ध हो तो उसे भोजसर्वे वाता विनश्यन्ति देहोपद्रवकारिणः ॥ नके समय ( भोजनसे पूर्व ) सेठ और हर्रका सेठ, काली मिर्च और देवदारु समान भाग
समान-भाग-मिश्रित चूर्ण खिलाना चाहिये । ले कर चूर्ण बनावें ।
(मात्रा-२ माशे ।)
For Private And Personal Use Only